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________________ दृष्टांत : ११८-१२१ पर ब्राह्मण किस हिसाब से लेता है ? वह दिया हुआ लेता है । बिना दिया कैसे लेता है ? चलो, मेरी मां के पास-यह कहकर उसे भी पकड़ कर ले गया और बबूल के तने से बांध दिया। . फिर लौट कर वह जाट बोला-राजपूत लेता है तो वह उचित है, परन्तु बनिए ! तुम किस हिसाब से लेते हो ? तुमने किस दिन मुझे बीज दिए थे ? और कब तुम मेरै ऋणदाता बने थे ? यह कहकर उसे भी ले जा बबूल के तने से बांध दिया। __चौथी बार आकर बोला - ठाकुर साहब ! मालिक सुरक्षा करने के लिए है या चोरी करने के लिए? यह कह कर उसे भी पकड़ ले गया और बबूल के तने से बांध दिया। फिर वह रावले में गया और उन चारों को बंदी बनवा दिया। उस किसान ने अपनी बुद्धि से चारों को बंदी बना अपना माल रख लिया । यदि वह एक-साथ चारों से लड़ता-झगड़ता तो वह उनसे कैसे निपट पाता? इसी प्रकार मिश्रधर्म की मान्यता वालों में से कुछ लोगों को तो पहले समझा दिया, अब पुण्य की मान्यता वालों को समझाने की वारी है । बाद में पुण्य की मान्यता वालों का भी खंडन करना शुरू कर दिया। ऐसे हैं भीखणजी कला-कुशल । ११८. त्याग किसलिए किसी ने कहा -मुझे असंयती को दान देने का त्याग कराओ। तब स्वामीजी बोले-तुमने मेरे वचनों पर श्रद्धा, प्रतीत और रुचि की है इसलिए त्याग कर रहे हो या मुझे बदनाम करने के लिए त्याग कर रहे हो ? ऐसा कहने पर वह मौन हो गया। ११९. क्या दागा हुआ वापिस लिया जा सकता है ? पीपाड़ में एक व्यक्ति ने स्वामीजी को गुरु बनाया। उसके घर वालों ने उसे धमकाया और कहा-वापस जाकर गुरु-मंत्र दे आओ। वह वहां जाकर बोला-तुम्हारा गुरु-मंत्र वापस लो। जो त्याग कराए, वे भी वापस ले लो। तब स्वामीजी बोले- क्या दागा हुआ वापिस लिया जा सकता है ? १२०. प्रकंपन के बिना निर्जरा नहीं पुर से विहार कर भीलवाड़ा आते समय मार्ग में हेमजी स्वामी को बहुत कष्ट हुमा । उन्होंने चन्द्रभानजी चौधरी से कहा आज तो हमें बहुत कष्ट हुआ। तब चन्द्रभान जी चौधरी ने कहा भीखणजी स्वामी कहते थे कि आत्म-प्रदेशों में प्रकंपन हुए बिना निर्जरा नहीं होती। १२१. जब अनाज मिट्टी जैसा लगने लगे रिणीही गांव में जीवोजी मेहता ने नगजी भलकट से कहा-भाइजी ! भीखणजी स्वामी कहते थे, जब अनाज मिट्टी जैसा लगे तब अनशन करना चाहिए। क्योंकि उससे पता चलता है कि आयु बहुत कम शेष रहा है । आज वैसा बीत रहा है, पर मैं
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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