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________________ भिक्खु दृष्टांत १६८ को पुकारा - आओ रे बेटे गाजीखां ! आओ रे बेटे मुल्लाखां ! ये नाम सुन ब्राह्मण कुपित होकर बोले- हे पापीनी ! ये क्या नाम ? ब्राह्मणों के नाम तो श्रीकृष्ण, रामकृष्ण, हरिकृष्ण, हरिलाल अथवा रामलाल, श्रीधर - इत्यादि होते हैं । गाजीखां, मुल्लाखां तो मुसलमानों के नाम हैं । वे कटार निकाल कर बोलेसच बता, ये किसके पुत्र हैं ? यदि सच नहीं बताया तो तुम्हें मारेंगे और हम भी मरेंगे । तब वह बोली- मारो मत । मैं सच सच बता देती हूं। तब उसने सारी बात उन्हें बता दी और कहा - ये पठान से उत्पन्न पुत्र हैं । तब ब्राह्मण बोले- हे पापीनी ? तुमने हमें भ्रष्ट कर दिया। अब हम गंगाजी में नहा, उसकी मिट्टी का लेप कर शुद्ध होंगे । तब वह बोली- भाई ! इन दोनों बच्चों को भी साथ ले जाओ और शुद्ध कर दो, लौटने पर मैं तुम सबको ब्रह्मभोज दूंगी । तब ब्राह्मण बोले- ये तो पठान से उत्पन्न होने के कारण मूलतः अशुद्ध हैं । ये शुद्ध कैसे होंगे ? हम तो मूलतः शुद्ध हैं । तुम्हारा अन्न खाया इसीलिए तीर्थयात्रा कर शुद्ध होंगे। पर वे मूलतः अशुद्ध हैं, फिर वे शुद्ध कैसे होंगे । भीखणजी स्वामी ने कहा- किसी साधु को दोष लगता है तो वह प्रायश्चित्त कर शुद्ध हो जाता है । पर वे ( अमुक-अमुक संप्रदाय वाले) मूल से ही मिथ्यादृष्टि हैं, उनकी श्रद्धा विपरीत है, गाजीखां और मुल्लाखां के साथी हैं, वे शुद्ध कैसे होंगे ? सम्यग्दृष्टि आए और उनका नई दीक्षा रूप जन्म हो तब वे शुद्ध हो सकते हैं । " ११६. बनी बनाई ब्राह्मणी किसी ने पूछा -- भीखणजी ! ये भी धोवन का पानी और गर्म पानी पीते है' साधु का वेश रखते हैं, लोच कराते हैं, फिर ये साधु क्यों नहीं ? तब स्वामीजी बोले- ये बनी बनाई ब्राह्मणी के साथी हैं । वह बनी बनाई ब्राह्मणी कैसे ? स्वामीजी बोले - एक मेर जाति के लोगों का गांव था। वहां कोई उच्च जाति का घर नहीं था । जो भी महाजन आता है वह दुःख पाता है । उन महाजनों ने 'मेरों' से कहा- यहां कोई उच्च जाति का घर नहीं है, इसलिए हम तुम्हें ऋण देते हैं । उच्च जाति के घर के बिना भोजन-पानी की कठिनाई होती है । तब 'मेर' लोगों ने शहर में जा महाजनों से कहा- आप हमारे गांव में वस जाएं। हम आपका सम्मान रखेंगे, सुरक्षा करेंगे। पर वहां कोई आया नहीं । उस समय एक ढेढ जाति के लोगों का गुरु मर गया था। उसकी पत्नी को मेरों ने ब्राह्मणी बनाया। उसे ब्राह्मणी जैसे कपड़े पहना दिए । उसके लिए स्थान बनाया और तुलसी का पोधा रोपा। स्थान की चूने से पुताई की । मेरणियों ने उस घर को १. आचार्य भिक्षु ने तात्कालिक जातीय मान्यताओं के आधार पर प्रचलित उस कहानी की वस्तुस्थिति को स्पष्ट करने के लिए केवल उल्लेख किया है। यह उनकी अपनी मान्यता नहीं है ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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