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________________ दृष्टांत : ११३-११५ बुद्धि किस काम की जिससे मनुष्य कर्म का बंध करता है । जिस बुद्धि के विस्तार से मनुष्य नरक में जाए वह बुद्धि किस काम की । तब वे मधिकारी बहुत प्रसन्न हुए। ११३. वे ठंडे पड़ गए स्वामीजी जोधपुर पधारे । तब वेषधारी साधु इकट्ठे होकर चर्चा करने आए । वे उल्टी-सीधी चर्चा करने लगे-जीव बचाने से क्या होता है ? विजयसिहजी ने 'अमारी' की घोषणा कराई, उससे उनको क्या हुआ ? इत्यादि प्रश्नों को वे राजद्वार तक ले जाने लगे। तब स्वामीजी बोले --शास्त्रों में राजा की नरक गति बतलाई गई है इत्यादि सारी चर्चा शास्त्र खोल कर राजाजी के सामने करो। यह सुन वे ठंडे पड़ गए। ११४. सम्यगदष्टि या मिथ्यादृष्टि ? आचार्य रुघनाथजी ने स्वामीजी से पूछा-विजयसिंहजी ने अपने राज्य में 'अमारी' की घोषणा कराई, जलाशयों पर पानी छानने के लिए गलने रखवाए, दीओं पर ढक्कन डलवाए, बूढ़े बेलों पर भार लादना बंद करवाया और बूढे माता-पिता की सेवा करने का निर्देश दिया। इन सब कामों में राजाजी को क्या फल हआ ? तब स्वामीजी बोले-राजाजी सम्यग्दृष्टि हैं या मिथ्यादृष्टि ? ऐसा पूछने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। ११५. सब एक हो जाओ किसी ने कहा -भीखणी ! तुम और अमुक-अमुक संप्रदाय वाले एक हो जाओ। तब स्वामीजी बोले -तुम महाजन, कुम्हार, जाट, गूजर ये सब एक हो सकते हो या नहीं ? तब वह बोला-हम तो एक नहीं होंगे क्योंकि उनकी जाति ही भिन्न है। तब स्वामीजी बोले-वे भी मूलतः मिथ्यादृष्टि हैं, गाजीखां और मुल्लाखां के साथी हैं। उसने पूछा- गाजीखां मुल्लाखां कौन थे ? तब स्वामीजी बोले- एक ब्राह्मण और एक ब्राह्मणी दोनों परदेश गए। वहां ब्राह्मण ने बहुत धन कमाया । कुछ समय बाद ब्राह्मण मर गया। तब ब्राह्मणी एक पठान के घर में चली गई । उसके दो पुत्र हुए। एक का नाम रखा गाजीखां और दूसरे का नाम मुल्लाखां । कुछ समय बाद वह पठान भी मर गया । तब ब्राह्मणी धन और पुत्रों को ले भपने देश लोट आई। उसके धन को देखकर बहुत सगे-संबंधी इकट्ठे हुए । कोई उसको बुआ कहता है, कोई चाची कहता है। अब ब्राह्मणी ने कहा-इन बच्चों को यज्ञोपवीत दो। उसने उसके उपलक्ष में भोज किया और बहुत ब्राह्मणों को भोजन करवाया। यज्ञोपवीत दिलाने के लिए पुत्रों
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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