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________________ १६० भिक्खु दृष्टांत मारवाड़ में आता था । वह लोगों के खेतों को उजाड़ देता। तब जाटों ने राजा विजय सिंहजी के सामने पुकार की--मोती बनजारा हमारे खेतों को उजाड़ देता है। तब राजाजी ने मोती बनजारे से कहा-'जाटों के खेतों को मत उजाडो।' तब मोती बोला-'मैं तो आऊंगा तब ऐसे ही होगा।' राजाजी ने कहा- "ऐसे ही होगा तो फिर हमारे देश में मत आना । यदि हमारे पास नमक है तो दूसरे बहुत बनजारे आएंगे। हम किसी को अन्याय नहीं करने देंगे।" इस दृष्टांत के आधार पर जेठमलजी ने कहा - तुम चले जाओगे तो दूसरे व्यापारियों को लाकर बसा देंगे. किन्तु साधुओं को निकालने का अन्याय हम नहीं करेंगे। तब बावेचाजी अपनी-अपनी चाभियां ले अपने-अपने घर चले गए। अब हम तुम्हें दान नहीं देंगे कुछ समय बाद बावेचा लोगों ने ब्राह्मणों से कहा-हम तुम्हें दान देते हैं, उसमें भीखणजी पाप बतलाते हैं, इसलिए अब हम तुम्हें दान नहीं देंगे। तब ब्राह्मण स्वामीजी के पास आकर बोले-हमें दान देने में आप पाप बतलाते हैं, इसलिए बावेचा हमें दान नहीं देते हैं। तब स्वामीजी ने कहा-तुम्हें बावेचा लोग पांच रुपये दें तो भी मुझे मनाही करने का त्याग है। __तब ब्राह्मणों ने बावेचा लोगों से कहा---बापजी ने प्रत्येक ब्राह्मण को पांच-पांच रुपये देने का आदेश दिया है। यह सुन बावेचा लोग बहुत लज्जित हुए। ० परीषह सहने में कितना दृढ़ स्वामीजी रात्री में व्याख्यान देते थे। उस समय बावेचा लोग ढोलक बजाते, गाते और व्याख्यान में विघ्न डालते । तब भाइयों ने कहा-महाराज ! आप दूसरी जगह ठहरें । तब स्वामीजी बोले-खेतसीजी नवदीक्षित है। हम देखना चाहते हैं कि यह परिषह सहने में कितना दृढ़ है । कुछ दिनों तक विघ्न डाला, फिर बावेचा लोग थक कर मौन हो गये। ___० सगड़ा मत करो पर्युषण के दिनों में बावेचा लोगों ने इन्द्रध्वज की यात्रा निकाली। उन्होंने स्वामीजी के सामने बहुत समय तक खड़े रहकर गाया, बजाया और तानें मिलाई । तब कुछ श्रावक बावेचा लोगों से झगड़ा करने लगे। तब स्वामीजी ने कहा-झगड़ा मत करो। इन्हें रोको मत कारण कि ये प्रतिमा को भगवान् मानते हैं । ये या तो भगवान् के पास गाना-बजाना करते हैं या भगवान् के साधुओं के पास । ___ तब बावेचा लोग बोले-भीखणजी हर बात को सम्यग्दृष्टि से ग्रहण कर लेते हैं । ऐसा कहते हुए वे आगे बढ़ गए।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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