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________________ दृष्टांत : ९३-९५ १५९ तब स्वामीजी बोले-"किसी ने मिश्री खाई और जानता है कि मैंने जहर खा लिया है, तो वह मरता है या नहीं ?" सब वह बोला-"नहीं मरता, क्योंकि उसका गुण मारने का नहीं है।" स्वामीजी बोले-"वैसे ही हम साधु हैं और तुमने हमें मसाधु जान कर दान दे दिया, तो वह तुम्हारे ज्ञान की खामी है; किन्तु साधु को दान देने में धर्म ही होता है।" ६३. नकल करने का पाठ किससे पढ़ा स्वामीजी अमरसिंहजी के स्थानक में गए। उसके भीतर खेजड़ी का पेड़ देख कर स्वामीजी बोले-"रात के समय यहां प्रस्रवण डालते होंगे ? तब इस पेड़ की दया कैसे पलेगी?" तब उनका साधु स्वामीजी के शब्दों की नकल करते हुए बोला । तब स्वामीजी बोले-"यह नकल करने का पाठ अपने मन से ही पढ़ा या गुरुजी के पास पढा?" तब अमरसिंहजी ने अपने शिष्य को रोका और स्वामीजी से कहा- "आप कुछ मन में मत लाना।" ६४. तुम्हारी कौन-सी सामर्थ्य ? गुमानजी का शिष्य रतनजी बोला--' मैं भीखणजी से चर्चा करना चाहता हूं।" तब गुमानजी बोले- "हम भी भीखणजी से चर्चा करने में सकुचाते हैं, तब तुम्हारी कौन-सी सामर्थ्य ?" तब रतनजी ने पूछा ---"आप क्यों सकुचाते हैं।' तब गुमानजी बोले-"भीखणजी से कोई चर्चा करता है, तब वे किसी उत्तर को पकड़, उस विषय पर गीतिका बना देते हैं। फिर गहस्थों को सिखा देते हैं । इससे चर्चा करने वाले की गांव-गांव में अपकीर्ति होती है। इस दृष्टि से हम भीखणजी से चर्चा करते सकुचाते हैं। ९५. हम ऐसा अन्याय नहीं करेंगे स्वामीजी ने पाली में चातुर्मास किया । उस समय बावेचाजी ने दूकान के मालिक से कहा -- "तुम्हें दुगुना किराया देंगे, तुम यह दूकान हमें दे दो।" तब दूकान के मालिक ने कहा- अभी तो वहां स्वामीजी ठहरे हुए हैं, यदि तुम पूरी दूकान को रुपयों से पाट दो तो भी मैं वह तुम्हें नहीं दूंगा। स्वामीजी के विहार कर जाने के बाद भले तुम ले लेना। फिर बावेचाजी ने हाकिम जेठमलजी के पास जा अपने-अपने घर की चाभियां उनके सामने डाल दी और कहा-या तो यहां भीखणजी रहेंगे या हम रहेंगे । तब हाकिम बोले-'ऐसा अन्याय तो हम नहीं करेंगे । बस्ती में वेश्या और कसाई रहते हैं, उन्हें भी हम नहीं निकालते तो फिर भीखणजी को हम कैसे निकालेंगे।' हाकिम ने दृष्टांत दिया-विजयसिंहजी के राज्य में मोती नाम का बनजारा था। उसके लाख बैल थे, इसलिए वह 'लक्खी बनजारा' कहलाता था । वह नमक लेने के लिए
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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