SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दृष्टांत : ९६ ६६. यह शोभाचंद सेवक निष्पक्ष नाडोलाई में शोभाचंद नाम का सेवक था । उसे पाली में बुला कर बावेचाजी ने कहा-'भीखणजी खेरवे गांव में हैं । तुम उनके विषय में निन्दात्मक कविता लिखो। सतरह प्रकार की पूजा रची जा रही है। उसमें से तुम्हें दस-बीस रुपये देंगे।' तब शोभाचंद बोला-भीखणजी से बात करने के बाद उनके बारे में निन्दात्मक कविता लिखूगा । यह कह कर वह खेरवे में आया। स्वामीजी को वंदना की स्वामीजी बोले-तुम्हारा नाम शोभाचंद ? तब वह बोला—हां महाराज ! फिर स्वामीजी ने पूछा-तं रोडीदास सेवक का बेटा है ? तब वह बोला-हां, महाराज ! फिर शोभाचंद बोला-भाप भगवान् की उत्थापना करते हैं, यह बात आपने अच्छी नहीं की। तब स्वामीजी बोले -हम तो भगवान् के वचनों के आचार पर घर छोड़ साधु बने हैं, फिर हम भगवान् की कैसे उत्थापना कर सकते हैं ? फिर शोभाचंद बोला-आप देवालय की उत्थापना करते हैं ? तब स्वामीजी बोले-देवालय में हजारों मन पत्थर होता है । हम तो सेर दो सेर पत्थर की भी उत्थापना कहां करते हैं-कहां उठाते हैं। तब वह बोला-आप प्रतिमा की उत्थापना करते हैं, प्रतिमा को पत्थर कहते हैं । तब स्वामीजी बोले-हम प्रतिमा की उत्थापना कहां करते हैं ? हमें झूठ बोलने का त्याग है । इसलिए हम सोने की प्रतिमा को सोने की प्रतिमा, चांदी की प्रतिमा को चांदी की प्रतिमा, सर्वधातु की प्रतिमा को सर्वधातु की प्रतिमा और पाषाण की प्रतिमा को पाषाण की प्रतिमा कहते हैं। ___ यह सुनकर शोभाचंद बहुत हर्षित हुआ। ऐसे पुरुषों का अवगुण मैं कैसे बोलू ? ऐसे पुरुषों का तो मुझे गुणानुवाद करना चाहिए-यह सोचकर उसने स्वामीजी की स्तुति में दो छंद लिखें । स्वामीजी को सुना, उन्हें वंदना कर, वह पाली आ गया। बावेचा लोगों ने पूछा-क्या तुमने छंद बनाए ? शोभाचंद बोला-हां, बनाए । बस, यह सुनकर शोभाचंद को साथ ले स्वामीजी के श्रावकों के पास आकर बोले -यह शोभाचंद सेवक निष्पक्ष आदमी है । भीखणजी को यह जैसा जानता है वैसा ही कहेगा । कहो भाई ! भीखणजी कैसे हैं ? तब शोभाचंद बोला-'क्यों कहलाते हो ? उनकी मान्यता उनके पास है और अपनी मान्यता अपने पास ।' फिर भी बावेचा बंधु माने नहीं । वे बोले -तुम कहो। - फिर शोभाचंद बोला-मुझे भीखणजी में गुण या अवगुण जो भी दिखता है वैसा कहूंगा । तब बावेचा लोग बोले-'तुम्हें जैसा लगे वैसा कहो।' तब शोभाचंद ने जो छन्द बनाए उन्हें सुनाने लगा--
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy