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________________ १५८ भिक्खु दृष्टांत अथवा मैथुन के आवेश से हाथ कांपते हैं। तब वे क्रोध के आवेश में बोले-“साले का सिर काट डालं।" तब स्वामीजी बोले-"जगत् की सभी स्त्रियां मेरे मां और बहिन के समान हैं । और यदि तुम्हारे घर में कोई स्त्री हो, तो वह मेरी बहिन होगी। यदि इस दृष्टि से साला कहा हो, तो ठीक है । और यदि तुम्हारे घर में स्त्री न हो और मुझे साला कहते हो, तो तुम्हें झूठ लगता है । और तुमने साधुपन स्वीकार किया, तुमने छह काय के जीवों को मारने का त्याग किया था । तुम मुझे साधु भले ही मत मानो, पर कम से कम मैं त्रसकाय में तो हूं। मेरा सिर काटने को कहा, तो क्या साधुपन स्वीकार करते समय मुझे मारने की छूट रखी थी?' यह सुन वे निरुत्तर हो गए। फिर मोतीरामजी चौधरी ने कहा- "यहां से उठो ! हमें लज्जित कर रहे हो ? ये तो क्षमाशील साधु हैं और तुम अंट-संट बोल रहे हो।" ऐसा कह हाथ पकड़ उन्हें यहां से ले गए। ० फिर चर्चा नहीं की ____ कुछ दिनों बाद स्वामीजी और खंतिविजयजी पीपाड़ आए। तब लोगों ने सोचा, अब इनमें परस्पर चर्चा होगी। स्वामीजी जहां गोचरी जाते हैं, वहां आचार्य रुघनाथजी के श्रावक कहते हैं- "पूज्यजी ने कहा है-खंतिविजयजी से चर्चा कर उन्हें निष्प्रभाव करो।' तब स्वामीजी बोले ---"वे करेंगे तो उनसे चर्चा करने का भाव है।" फिर सरूपजी मेहता ने खंतिविजयजी के पास जाकर कहा-भीखणजी चर्चा करने को तैयार है, इसलिए तुम उनके साथ चर्चा करो।" पर वे स्वामीजी से चर्चा करने को तैयार नहीं हुए। स्वामीजी ने पूरे एक मास तक वहां रह कर प्रस्थान कर दिया। स्वामीजी विहार कर जा रहे थे, खंतिविजयजी के उपाश्रय के पास खड़े रहे, फिर भी खंतिविजयजी ने कोई चर्चा नहीं की। • गुड़ के बदले अफीम उसके बाद पाली में एक दिन खंतिविजयजी से चर्चा हुई। खंतिविजयजी ने कहा-मिश्री के बदले नमक आ जाए, तो वह पात्र में गिर गया, इसलिए खा लेना चाहिए।" तब स्वामीजी ने कहा-"किसी ने गुड़ के बदले अफीम दे दिया और मिश्री के बदले सोमल क्षार दे दिया। वह भी तुम्हारे अनुसार खा लेना चाहिए, क्योंकि वह भी पात्र में आ गिरा है।" तब वे हतप्रभ हो गए । सही उत्तर देने में अपने आपको समर्थ नहीं पाया। ६२. खाई मिश्री, जाना जहर पीपाड़ निवासी चोथजी बोहरा ने पाली में दुकान शुरू की। चतुर्मास पूर्ण होने पर स्वामीजी उसकी दूकान पर वस्त्र-याचना करने गए। उसने दो वासती का दान देकर पूछा-"मैं तुम्हें असाधु मानता हूं। तुम्हें वासती का दान दिया, उसमें मुझे क्या हुआ?" .
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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