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________________ भिक्खु दृष्टांत १३६ में 'ता कितने और 'तं' कितने ? तब स्वामीजी बोले - "भगवती में 'का' कितने 'कं' कितने, 'खा' कितने 'ख' कितने, 'गा', कितने और 'गं' कितने, 'घा' कितने और 'घं कितने ? " तब वह निरुत्तर हो गया । ४१. एक के खण्डित होने पर, सब खण्डित किसी ने पूछा - " भीखणजी ! तुम ऐसे कहते हो कि एक महाव्रत के खण्डित हो जाने पर पांचों ही महाव्रत खण्डित हो जाते हैं", यह कैसे ? तब स्वामीजी बोले - "जब पाप का उदय होता है, तब जीव संसार में ही दुःख भोगता रहता है ।" जैसे, एक भिक्षाचर को शहर में घूमते हुए पांच रोटी का आटा मिला । वह रोटी बनाने लगा । एक रोटी सेक कर उसने चूल्हे के पीछे रखी, एक रोटी तवे पर सिक रही है, एक रोटी अंगारों पर सिक रही है, एक रोटी का लोंदा हाथ में है, एक रोटी का आटा कठौती में है । उस समय एक कुत्ता आया । वह कठौती में पड़े हुए एक रोटी के आटे को ले भागा । उस कुत्ते के पीछे भिखारी दौड़ा। वह लड़खड़ा कर नीचे गिर गया। उसके हाथ में रोटी का लोंदा था, वह धूल में मिल गया। वापस आकर देखा तो जो रोटी चूल्हे के पीछे रखी थी, वह बिल्ली ले गई, जो तवे पर थी वह तवे पर ही जल गई तथा जो अंगारों पर थी, वह अंगारों पर ही जल गई । इस प्रकार एक महाव्रत के खण्डित होने पर पांचों ही महाव्रत खण्डित हो जाते हैं । ४२. प्रतिकूलता में भी अजेय स्वामी भीखणजी बिलाड़ा पधारे। स्त्री और पुरुष बहुत द्वेष करते । आहार और पानी भी पूरा नहीं मिलता । तब स्वामीजी ने साधुओं से कहा- एक मास तक यहां रहने का भाव है । तब साधु बोले- यहां आहार- पानी की बहुत कठिनाई है । अनेक व्यक्ति आहार इस स्थिति में स्वामीजी ने एक साधु को आसपास के गांवों में भेजना शुरू ' किया। एक साधु को रावलों में और एक साधु को गांव के महाजनों के घर भेजने लगे । स्वामीजी स्वयं आहार लाने के लिए गए किन्तु महाजनों में यह निषेध व्यवस्था की गई थी 'भीखणजी को एक भी रोटी देगा उसे ग्यारह सामायिक का दंड भुगतना पड़ेगा। जहां जाते और भोजन-जल के बारे में पूछते वहां उत्तर मिलता- हम तो स्थानक में सामायिक करते हैं । किसी एक स्थान पर आहार- पानी के बारे में पूछने पर उस बहिन ने कहामेरी ननद स्थानक में सामायिक कर रही है। भीखणजी को रोटी देने से उसकी सामायिक नष्ट हो जाएगी, ऐसी उल्टी श्रद्धा । कहीं भाई आहार -पानी दे देता और कहीं बहिन आहार- पानी दे देती । इस प्रकार कुछ दिन बीत गए । आचार्य रुघनाथजी जोधपुर से चल कर आए ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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