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________________ दृष्टांत : ४३-४४ १३७ लोग व्याख्यान सुनने आए। वे लम्बे विहार करके आए थे इसलिए उन्हें ज्वर हो गया। उनके पास जो साधु थे वे अनपढ़ थे । वे व्याख्यान देना जानते नहीं थे। तब परिषद् जैसे आई वैसे ही लौट गई। बाजार में कुछ लोग स्वामीजी का व्याख्यान सुनने लग गए । कुछ दिनों बाद लोगों ने कहा आप परस्पर चर्चा करें । एक दिन ब्राह्मणों को उकसाया । मेरा शिष्य अवनीत हो गया, वह ब्राह्मणों को दान देने में पाप कहता है । ब्राह्मण स्वामीजी के पास आ विवाद करने लगे । उस समय रामचंद्र कटारिया बोला- यदि तुम्हें दान देने में आचार्य रघुनाथजी धर्म कहें तो मेरी कोठी में २५ मन अनाज भरा पड़ा है वह सारा का सारा दान कर दूंगा । तब ब्राह्मण और रामचन्द्र सारे लोग आचार्य (रघुनाथजी ) के पास आए । तब रामचन्द्र ने कहा- मेरी कोठी में २५ मन अनाज पड़ा है। यदि आप ब्राह्मणों को देने में धर्म कहें तो मैं २५ मन गेहूं इनकी पोटली में डाल दूं । आप कहें तो घूघरी बनाकर इन्हें खिला दूं, आप कहें तो आटा पिसा कर दे दूं । आप कहें तो रोटियां बना दो मन चना की कड्ढी बना ब्राह्मणो को भोजन करा दूं । जिसमें ज्यादा धर्म हो वह आप बताएं । -- तब अाचार्य रघुनाथजी बोले हम तो साधु हैं हम कैसे कह सकते हैं, भाई ! हम इस विषय में मौन हैं। तब रामचन्द्र बोला- आप इस विषय में कुछ नहीं कह सकते तो भीखणजी कैसे कहेंगे ? आपकी अपेक्षा तो वे कठोर आचार पालते हैं । आप बड़े हैं फिर लोगों को कैसे उकसाते हैं ? चर्चा करनी हो तो न्याय की चर्चा की जाए। वापिस लौट आया । यह कह कर वह स्वामीजी को रहते एक मास होने को आया । तब आपने भारीमालजी स्वामी को आचार्य रघुनाथजी के पास भेजा। आपके श्रावक चर्चा करने की बात करते हैं । यदि चर्चा करनी हो तो करें । आचार्य रघुनाथजी ने कहा - किसे चर्चा करनी है रे ! वहां बहुत उपकार हुआ। बहुत लोगों को तत्त्व समझाकर आचार्य भिक्षु वहां से विहार कर गए। ४३. मेरणियों का मोह कंटालिया में एक भाई दीक्षा लेने को तैयार हुआ, पर वह बोला- "मेरा अपनी मां के प्रति मोह है । अतः मेरी माता जीवित है, तब तक लगता है मैं दोक्षा नहीं ले पाऊंगा ।" कुछ दिनों बाद उसकी मां की मृत्यु हो गई उसके बाद स्वामीजी ने उसे फिर उपदेश दिया । मैं पहाड़ी इलाके में व्यापार करता हूं। वहां मेरिणयों' गया है ।" । तब वह बोला- - स्वामीजी ! के प्रति मेरे मन में मोह हो स्वामीजी बोले - "मां तो एक थी सो मर गई, पर मेरणियां तो बहुत हैं । वे सब कब मरें, कब तूं दीक्षा ले ?" ४४. अधिक धर्म किसे ? ( १ ) दान पर भीखणजी स्वामी ने एक दृष्टांत दिया। पांच व्यक्तियों न साझेदारी में
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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