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________________ दृष्टांत : ३७-४० १३५ तब वह बोली-"यह बात मन में आई तो थी।" तब स्वामीजी ने कहा-"यों दहलती हो, तो कैसे काम होगा? दीक्षा का काम तो जीवन भर का है।" ___३७. यदि दामाद रोने लग जाए खेरवा के चतरो शाह ने स्वामीजी से कहा-"महाराज ! मन में दीक्षा लेने का विचार उठ रहा है।" तब स्वामीजी ने कहा- "तुम्हारा हृदय दुर्बल हैं । तुम्हारे पुत्र आदि रोने लगते हैं, तब यदि तुम भी रोने लग जाओ, तो काम कठिन होगा।" तब उसने कहा-"आंसू तो आ ही जाते हैं।" तब स्वामीजी ने कहा-"दामाद ससुराल में अपनी स्त्री को लाने जाता है, तब उसकी स्त्री तो रोती है, पर उसके देखा-देखी दामाद भी रोने लग जाए, तो वह लोगों में भद्दा लगता है । इसी प्रकार कोई साधु बनता है, तब उसके सम्बन्धी रोते हैं, यह तो उनका स्वार्थ है, पर उनके देखा-देखी दीक्षा लेने वाला रोने लग जाए, तो बात बिगड़ जाती हैं।" ३८ तुम्हारा पति कैसे मरा ? पीपाड़ में स्वामीजी गोचरी पधारे । एक बहिन ने इस प्रकार कहा-- "अमुक बहिन ने भीखणजी की मान्यता स्वीकार की, उससे उसका पति मर गया।" तब स्वामीजी बोले-"बहिन ! तू भी अवस्था में छोटी लगती हैं। तू तो भीखणजी की निंदा कर रही है, फिर तेरा पति कैसे मर गया ? ____ तब पास में खड़ी बहिनों ने कहा- "भीखणजी ये ही हैं।" तब वह लज्जित होकर घर में भाग गई। ३६. सम्पत्ति मिलने से कौन-सा ज्ञान आ जाता है ? आऊवा में उत्तमोजी ईराणी बोला-'भीखणजी ! तुम देवालय का निषेध करते हो पर पुराने जमाने में तो बड़े-बड़े लखपति और करोड़पति लोगों ने देवालय बनाए थे।" तब स्वामीजी बोले-"तुम्हारे घर में पचास हजार की सम्पत्ति होने पर देवालय कराओगे या नहीं ? तब वह बोला-"मैं कराऊंगा। तब स्वामीजी ने पूछा-'तुम्हारे में जीव के भेद, गुणस्थान, उपयोग, जोग, लेश्या कितनी? तब वह बोला-"यह तो मैं नहीं जानता।" तब स्वामीजी बोले-“ऐसे ही समझदार पहले हुए होंगे ! सम्पत्ति मिलने मात्र से कौन-सा ज्ञान आ जाता है ? ४०. 'का' कितने और 'क' कितने ? भाऊवा में सादुलजी का बेटा नगजी बोला- "भीखणजी ! "तस्त्तरी" के पाठ
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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