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________________ भिक्खु दृष्ट जद स्वामीजी मुनी रौ दृष्टंत दीयो- ज्यूं एक मुनी गांम मै आयो । साथै मौका चेला । आटो घी गुळ मूंहढा सूं बोल नै तौ मांगे नहीं, पिण सानी करने मांगे | आंगुळीया ऊंची करै - इतरा सेर आटो इतरा सेर घी इतरी दाल इतरौ गुळ । जद गांम रा चौधरी पटवारी ओछौ धामै जद चेला नै हुंकारौ करने घर हाटांरा कैलू फोड़ावै । जद लोक बौल्या : "मुनि मून पारसी भणे, हंकारे घट काया हणे । अबोल्यांई ऊदम करें, तौ बोल्या कहौ काह गति करै ।। " स्वामीजी बोल्या - जिसी उण मुनी री मूंन जिसी सावद्य दान मै यांरै मूंन है। मूंहढा सूं तौ मून कहिता जाओ पिण श्रावक-श्राविका ने जीमायां पुन मिश्र री आमना करै । लाडूआं री दया पळावा री आमना करै । २३२. खोल नै दै तौ लै नहीं भेषधारी पोते हाथ तो कमाड़ जड़ें उघाड़े अनै गृहस्थ खोल नै देवै तौ वे नहीं तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयौ - जिम कोई मानवी पर गाम जातां भंगी भींट लीयौ । उनै पूछ्यौ तूं कुण? जद तिण कह्यौ हूं भंगी छू । जद तिण कह्यौ - म्हारौ भातो भींट लियो । इकहितां माहो माहि गालि रालि बोलतां बथोबथ आय गया । भंगी ऊपर आय बैठौ । भंगी कहै - मौन छोड़ । जद उ कहै - छोड़ नहीं । जद भंगी कहै - तूं कहै ज्यूं करू मोने छोड़ौ । जद ऊ बौल्यौ -- थारी स्त्री कनै चौकौ दराय कोरा घड़ा मै पांणी मंगाय महाजन रा हाट सूं आटो लेई इसी री इसी रोटी कराय देवै तौ छोडूं । जद भंगी कबूल करी । उण कह्यौ - जिण रीते स्त्री कनै रोटी कराय दोधी । जे समजणी हुवै ते उणनें मूरख जांणे । जे भंगी री भींटी तौ न खाधी भंगी री कधी खाधी तिण सूं उणनै विवेक रौ विकळ जांण । ज्यू गृहस्थ कमाड़ खोल नै देवै ते तौ लेवै नहीं अने अंधारी रात्रि मै हाथ सूं कमाड़ जड़े उघाड़े तिण री संक आने नहीं ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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