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________________ दृष्टांत : २३०-२३१ =$ for ₹ घणी अव्रत । थोड़ा राखे जिण रै थोड़ी अव्रत | जद कोई कहै - पोसा पड़िहण न करै तौ उणनै प्राछित क्यूं देवे ? जद स्वामीजी बोल्या -पोसा मैं अणपड़िलेह्या उपगरण भोगवण रा त्याग । तिण पड़िलेह्या तौ नहीं अने भोगव्या जिण लेखे त्याग भागा । तिरौ प्राछत्त आवै । पोसा मै पिण शरीर अव्रत में है । ते शरीर नीं साता वस्त्रादिक आघा पाछा पूंजणादिक करै ते सावद्य छै । जे वस्त्र राख्या जिणरौ पड़िलेहण न करें अनै न भोगवै तौ विशेष कष्ट ऊपजै, ति सूं पोसौ अपूठौ पुष्ट हुवै। ते कष्ट सहिण री समर्थाई नहीं, तिण सूं वस्त्रादिक पड़िलेही नै भोगवै छै । जिम कोई रै अछयो पांणी पीवा रात्याग । हिवै ते पाणी छां पीवा र वासतै पिण दया रै वासते नहीं । नहीं छाणै तौ दया अपूठी चोखी पळ | ते किम ? जे न छाण जद पीणौ नहीं । जे अछांण्यौ पीवा रा तौ त्याग अनै छां नहीं तौ पीणौ पड़ेईज नहीं । इण वासते जे छांण ते पोता री अव्रत सेवा रै वास्तै छां । तिण में धर्म नहीं । २३०. सो व्रत अन अव्रत दोनूं ई सूक जाये I केई हैहै-श्रावक री अव्रत सींच्यां व्रत वधै । तिण ऊपर कुहेत लगावबरा रूख मै आंब रूख ऊगौ । नींब री जड़ीया में पाणी कूढयां नींब नै आंदोनूं ई प्रफुल्लित हुवै, ज्यूं श्रावक री अव्रत सींच्यां व्रत अव्रत दोनूं धै जद स्वामीजी बोल्या - इम अव्रत सींच्यां व्रत बधै तौ तिण रै लेखे श्रावक स्त्री सेवैति पिण अव्रत सेवी तिण सूं व्रत पुष्ट हुवै । तथा नींब री जड़ीया मै अग्नि न्हाख्यां दोनूं बळ ज्यूं किण हि जावजीव सीळ आदरचौ तौ अव्रत बाळी तिण रं लेख व्रत अव्रत दोनूं बळ । तथा गृहस्थ नै पारणा करायां अव्रत सींची, तिण सूं व्रत वधती कहै तौ तिण र लेख उवास कीयां करायां अव्रत सूकां व्रत पिण सूक जावै । इम हिंस्या, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह सेव्यां सेवायां अव्रत सींची तौ उण रै लेख व्रत पिण वधती कहिणी । तथा हिस्या, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह त्याग कीयां कराया अव्रत सूकै तौ तिण रै लेख व्रत पिण सूकी कहिणी । २३१. मून पारसी कई कहै - सावद्य दान मै पुन पाप मिश्र न कहिणौ तिण सूं सावद्य दान हे मूंन राखां ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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