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________________ समकालीन रचनाकार, वरंगचरिउ की भाषा, छन्द, अलंकार एवं रस, चारित्रिक विकास, प्रकृति चित्रण एवं धार्मिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। मूलपाठ पाठ-भेद सहित तैयार किया गया है, जिसमें तुलनात्मक प्रणाली एवं स्वेच्छया पाठ-निर्धारण प्रणाली को ग्रहण किया गया है। विषय वस्तु को सुगमता से समझने के लिए साथ ही वरंगचरिउ का हिन्दी अनुवाद किया गया है, जिसमें प्रत्येक कडवक का शीर्षक देकर विषय को स्पष्ट किया गया है। __ अंत में परिशिष्ट के अन्तर्गत विशिष्ट धार्मिक शब्दावली एवं नामानुक्रमणिका को प्रस्तुत किया है, जिससे विद्वान् एवं अनुसंधानकर्ता को शब्द देखने में सुविधा हो और वह आसानी से उसे देख सकें। उन शब्दों के अन्तर्गत धार्मिक शब्दावली, आभूषणों के नाम, जानवरों के नाम, शरीर के अंगों के नाम, फलों के नाम, वाद्ययंत्र, उपकरण विशेष, अस्त्रों के नाम, जाति विशेष नाम, पात्रों के नाम, नगर एवं क्षेत्रों के नाम, षट्ऋतु नाम एवं राज्य अंग के नाम अलग-अलग सम्बन्धित शीर्षकों में दिये हैं। ___ सबसे अंत में भूमिका और पाठ-सम्पादन में सहायक ग्रन्थों की सन्दर्भ ग्रंथ-सूची दी है, जिसे अकारादि क्रम से लिया है एवं इसमें मूल ग्रंथ, आलोचनात्मक ग्रन्थ, कोष ग्रन्थ, ग्रन्थभण्डारों की ग्रन्थ-सूची एवं पत्र-पत्रिकाओं को अलग-अलग अंकित किया गया है। इस संपादन के प्रेरणा प्रदाता, जैनदर्शन एवं प्राकृत भाषा के तलस्पर्शी विद्वान डॉ. जिनेन्द्र जैन, सह-आचार्य, प्राकृत एवं जैनागम विभाग जिन्होंने मुझे इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करने का आत्म-विश्वास, उत्साह प्रदान किया है, मैं आपके प्रति हृदय से अत्यन्त आभार प्रकट करता हूँ। वरंगचरिउ ग्रंथ के सम्पादन एवं अध्ययन की गुणवत्ता को देखकर प्रबंधकारिणी कमेटी, श्री क्षेत्र महावीरजी एवं अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर ने स्वयंभू पुरस्कार - 2009 से मुझे सम्मानित किया है, अतएव मैं प्रबंधकारिणी कमेटी एवं अपभ्रंश साहित्य अकादमी का आभारी हूँ। प्रो. फूलचन्द्र प्रेमी, प्रो. सुदीपजी प्रो. श्रीयांस सिंघई, प्रो. जगतराम भट्टाचार्य, गुरुणाम् गुरु प्रो. सत्यरंजन बनर्जी, प्रो. कमलचन्द सोगानी, प्रो. राजारामजी एवं प्रो. प्रेमसुमन जैन से मिले निरन्तर शोधकार्य करते रहने की प्रेरणा तथा विषय एवं भाषागत सुझावों ने इस रचना को सुगम एवं गौरवमय बनाया है, अतः आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। - डॉ. सुमत कुमार जैन
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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