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________________ 72 वरंगचरिउ VIII. चारित्रिक विकास 'वरंगचरिउ' एक मध्ययुगीन चरितकाव्य है, जिसका नायक और कथानक दोनों ही पौराणिक परम्परा में बाईसवें तीर्थंकर भगवान् नेमीनाथ के समय से सम्बद्ध हैं। जहाँ कथा और उसके पात्र परम्परागत होते हैं तथा उनका चरित्र भी बहुत कुछ रूढ़ और परम्परागत है। अनुभूति युगीन यथार्थ को उसमें खोजना व्यर्थ है। अतः ऐसे काव्यों में चरित्र-चित्रण का अर्थ यह देखना है कि उसमें कितनी नवीनता और परिस्थिति के अनुकूल कितना स्पन्दन हमें मिलता है। मध्ययुगीन काव्यों में नायक अधिकतर पुरुष ही होता है अतः कुमार वरांग इसका नायक है। प्रधान पात्र के रूप में वरांगकुमार ही है, इसके अतिरिक्त धर्मसेन, देवसेन, गुणदेवी, मृगसेना, सुषेण, सुबुद्धि (मंत्री), वणिपति, सागरबुद्धि और भिल्लराज आदि इस काव्य के प्रमुख पात्र हैं, जिनके चारित्रिक विकास को वरांगचरिउ में देखा जा सकता है। वरांग कुमार-वरंगचरिउ' में कुमार वरांग का अन्य नाम 'वरतणु' भी प्राप्त होता है। युवराज वरांग के अनेक विशेषण वणिवरपहाण, सुन्दर, चारुवयण, चारूगत आदि वरंगचरिउ में प्राप्त हेते हैं। भोजवंशीय राजा धर्मसेन एवं गुणदेवी के यहां कुमार वरांग का जन्म हुआ था। कुमार के नगर का नाम कंतपुर था, जो विनीत देश में रम्या नदी के तट पर विद्यमान था। नूतन चन्द्रमा की तरह कुमार वरांग वृद्धिंगत हो रहा था। "गुणदेविहि पुत्तु वरंगु जाउ, परिवद्धिउ णवससि जिम कलाउ।" जब वह युवा हो गया तो उसका विवाह ललितपुर के राजा देवसेन की पुत्री सुनन्दा के साथ हुआ, साथ ही अनेक राजाओं की पुत्रियों का भी विवाह उसके साथ हुआ एवं एक वणिकपुत्री के साथ भी उसका विवाह हुआ। वरांग उदार, निर्भीक (निडर), निपुण, विवेकवान, दयालु, वीर आदि अनेक गुणों से युक्तत था। गुणदेवी-गुणदेवी उत्तमपुर के राजा धर्मसेन की प्रिय पटरानी और कुमार वरांग की माता है। माता के गुणों का बखान नहीं किया जा सकता है, वैसे ही गुणदेवी के मातृरूप का वर्णन करना अशक्य है। मातृस्नेह की जीवन्त प्रतिमा के रूप में गुणदेवी का वर्णन वरंगचरिउ में किया गया है।
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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