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________________ वरंगचरिउ 71 श्रेष्ठ हाथी के साथ हाथी भिड़ते हैं और फिर घोड़े के साथ घोड़े (घुड़सवार के साथ घुड़सवार) भिड़ते हैं, रथ पर सवार रथ पर सवार से भिड़ते हैं । युद्ध भूमि में युद्ध इतनी तेजी से हो रहा है, उड़ती हुई धूल के कारण मार्ग नहीं दिखाई पड़ रहा है। पैदल सिपाही, पैदल सिपाही को मारते हैं, योद्धा, योद्धा का परस्पर (एक-दूसरे) संहार कर रहे हैं। दोनों सेना में रौद्रता (क्रोध का रोस) उत्पन्न हो गया है, दोनों सेनाओं की धूल से रणभूमि ढक गई है, घोड़े के मुंह से फेन एवं हाथी का मद गिरने लगा है, घाव और रुधिर से धूल भी शांत हो गई हैं। फिर वीर (बहादुर) वीर से युद्ध में लड़ते हैं, कोई भिड़ता है, कोई पृथ्वी पर मूर्च्छित पड़ा है, किसी का सिर पृथ्वी पर गिरा पड़ा है, भयानक बलवान (योद्धा) पड़े हुए हैं, कैसे धड़, हाथ और चरणादि गिरे पड़े हैं, कैसे भूमि में मरण को प्राप्त हुए । भयानक - रस- भयानक - रस का स्थायीभाव 'भय' है। वरंगचरिउ में कुमार वरांग के भूल जाने पर भ्रमण करते हुए भयानक जंगल का वर्णन किया गया है, ' यथा कहीं सिंह के रौद्र गर्जना होती है, कहीं पर हिरण क्रीड़ा करते हैं, कहीं पर हाथियों का समूह युद्ध कर रहा है, कहीं पर वराह (जंगली सुअर) भिड़ते हैं और क्रोध पूर्वक अत्यन्त लड़ते हैं, कहीं सिंह का समूह अपनी क्रीड़ा में लवलीन है, कहीं पर सांभर (राजस्थान का जंगली पशु) और नील गायों का समूह प्राप्त करता है । कहीं पर मयूरी नाच रही है एवं मधुर शब्द कर रही हैं। उस जंगल में कुमार भूला हुआ भ्रमण करता है। किसी तरह वह बेचारा श्रेष्ठमार्ग नहीं पाता है T हत्या ( मारने) करने के लिए भयानक आवाज हो रही है। फिर तुरन्त ही सिंह को पाता है, वह विकराल दांतों वाला, (भक्षण करने के लिए) अपनी जीभ को लपलपा रहा था । उसकी पूंछ बड़ी और निरन्तर हिंसक थी । क्रूरता से युक्त वह दुष्ट मानो प्रलयकाल हो । यह देखकर राजपुत्र ( वरांग) शंकित होता है, जीवन के भय से शरीर कांपने लगता है और वह शीघ्र वृक्ष पर चढ़ जाता है । शान्त-रस-वरंगचरिउ में अध्यात्म एवं दर्शन होने से मुनि-प्रसंग में दो स्थान पर शान्त - रस का प्रतिपादन प्राप्त होता है, साथ ही इसका अन्त भी शान्त रस से ही होता है। 1. वरांगचरिउ, प्रथम संधि, कडवक - 20, 21
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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