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________________ वरंगचरिउ II. ग्रन्थ एवं ग्रंथकार परिचय 1. ग्रंथ परिचय अपभ्रंश भाषा में रचित वरंगचरिउ एक चरितकाव्य है, जिसमें कुमार वरांग का जन्म से लेकर अंतिम सल्लेखना तक वर्णन किया गया है। इसका चार संधियों में विभाजन किया गया है। कुल 83 कडवक हैं। इसका समय वि.सं. 1507 है । इस ग्रन्थ की एक विशेषता है कि कवि के लिए 'वर' शब्द बहुत ही प्रिय रहा है, इसीलिए उन्होंने सम्पूर्ण ग्रन्थ में अनेक बार 'वर' लगाकर अनेक शब्द दिये हैं। एक विशेषता यह भी है कि कवि ने छह (6) संख्या की जगह 'रिउ' शब्द दिया है, जो ज्योतिष का शब्द है अर्थात् ज्योतिष में रिउ का अर्थ छह होता है। इसी तरह रन्ध्र शब्द को 9 संख्या के लिए प्रयोग किया है। 2. ग्रंथकार परिचय 34 प्राचीन कवियों द्वारा अपनी रचनाओं में स्वयं का व्यक्तिक वृतान्त देना बहुत कम पाया जाता है। संस्कृत काव्यों में इसका प्रारंभ बाणभट्ट ने किया। वे सातवीं सदी के प्रारम्भिक अर्द्धभाग में सम्राट हर्षवर्धन (606-640 ई.) के समकालीन थे और उन्होंने अपनी दोनों रचनाओं - 'कादम्बरी' और हर्षचरित में अपने विषय में भी बहुत कुछ लिखा है । ' इसी तरह अपभ्रंश के सर्वप्राचीन ज्ञात कवि स्वयंभूकृत "पउमचरिउ" तथा "रिट्ठणेमिचरिउ" इन दोनों महाकाव्यों में उनके कर्ता के सम्बन्ध में भी बहुत कुछ वैयक्तिक वर्णन पाया जाता है। महाकवि पुष्पदंत की अभी तक तीन रचनाएँ प्राप्त हुई है - महापुराण, णायकुमारचरिउ तथा सहचरिउ इन तीनों में कवि ने अपने वंश, माता-पिता तथा स्वयं का बहुत कुछ वृत्तान्त दे दिया है। इसी परम्परा में पं. तेजपाल का नाम भी लिया जा सकता है। - पं. तेजपाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व पंडित तेजपाल राजस्थान के प्रसिद्ध कवि एवं मूर्धन्य विद्वान् थे । अपभ्रंश भाषा में काव्य - निबद्ध करने की ओर इनकी विशेष रुचि थी। ये मूलसंघ के भट्टारक रत्नकीर्ति, भुवनकीर्ति, धर्मकीर्ति एवं विशालकीर्ति की आम्नाय के थे । प्रति के प्रारम्भ में गुरु विशालकीर्ति को नमस्कार किया है। कवि ने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि वासवपुर नामक गांव में “वरसावडह” वंश में जाल्हव नाम के एक साहू थे। उनके पुत्र का नाम सुजड साहू था। वे 1. जसहरचरिउ, पुष्यदंत कृत, प्रस्तावना, पृ. 20 संशोधित सम्पादन - डॉ. हीरालाल जैन, भा.ज्ञा., दिल्ली, 1944
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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