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________________ वरंगचरिउ ____35 दयावन्त और जिनधर्म में अनुरक्त थे। उनके चार पुत्र थे-रणमल्ल, वल्लाल, ईसरू और पोल्हण। ये चारों ही भाई खण्डेलवाल जाति के सिरमौर या कुल के भूषण थे। रणमल साहू के पुत्र ताल्हुप साहू हुए एवं इनका पुत्र तेजपाल था। पं. तेजपाल का परिचय उनकी स्वयं अपनी कृति वरंग चरिउ में दिया है, जहां लिखा है महुणाम पसिद्धउ तेयपालु, मइ गमिउ णिरत्थउसयलकाल ।' साथ ही प्रत्येक संधि के अंत में भी परिचय प्राप्त होता है, जहां लिखा है"इयं वरंगचरिये। पंडियसिरि तेयपाल विरइए। मुणि सुविसाल कित्ति सुपसाए।" वरंगचरिउ की चतुर्थ संधि के कडवक नं. 23 में कवि ने अपने परिवार एवं गुरुपरम्परा का परिचय दिया है विउलकित्ति मुणिवरहु पसायं, रइयउ जिणभत्तिय अणुरायं । मूलसंघ-गुणगणपरियरियउ, रयणकित्ति हुयउ आयरियउ। भुवणकित्ति तहो सीसु वि जायउ, खम-दमवंतु वि मुणि विक्खायउ। तासु पहि संपय वि णिविहिट्ठउ, धम्मकीत्ति मुणिवरू वि गरिट्ठउ। तहो गुर होइ विमल गुणधारउ, मुणिसुविसालकित्ति तवसार। सो अम्हहं गुरु जहि महु दिण्णिय, पाइमकरणबुद्धि मइ गिहिय । सरपियवासउपुर सुपसिद्धउ, धण-कण-कंचण-रिद्धि समिद्धउ । वरसावउहं वंसु गरुयारउ, जाल्हउ णाम साहु वणिसारउ। तासु पुत्तु सूजउ दयवंतउ, जिण धम्माणुरत्त सोहंतउ। तासु पुत्र जहि कुल उद्धरियउ, रणमलणामु मुणहु गुणभरियउ। तहो लहुयउ वल्लालु वि हुंतउ, जिणकल्लाणइ जत्त कुणंतउ। पुणु तहो लहुयउ ईसरू जायउ, संपइ अच्छइ दयगुणसारउ। पोल्हणु णामु चउत्थु पसिद्धउ, णियपुण्णेण दव्वु-वहुलद्धउ। इय चत्तारिवि वंधव जाया; वरखंडिल्लवाल विक्खाया। रणमण णंदणु ताल्हुय हुंतउ, तासु पुत्त हउं कइगुण जुत्तउ । तेयपाल महु णामु पसिद्धउ, जिणवर भत्तिवि बुहगुण लद्धउ। घत्ता - कम्मक्खयकारणु, मलअवहारणु, हरुहभत्ति मइ रइयउ। जो पढइ पढावइ, णियमणि भावइ, येहु चरिउ तुइ सहियउ ।।24।। 1. वरंगचरिउ, कडवक 2
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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