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________________ वरंगचरिउ 21 णायकुमार चरिउ-यह महाकवि पुष्पदंत की द्वितीय रचना है। यह एक खण्डकाव्य है, जिसमें पंचमीव्रत के फल को व्यक्त करने के लिए एक सुन्दर कथानक दिया हुआ है। कथा नौ संधियों में वर्णित है। इसमें नागकुमार के चरित्र का अच्छा चित्रण किया गया है, जिसमें नागकुमार के अनेक विवाहों का वर्णन, उसका सौन्दर्य वर्णन, रूपवर्णन, जलक्रीड़ा, प्रेमजनित हर्षविषाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि प्रसंगों के वर्णन बड़े ही काव्यात्मक हैं। यह रचना बड़ी सुन्दर, सरस और चित्ताकर्षक है। इस ग्रन्थ का सम्पादन डॉ. हीरालाल जैन जी ने किया है। ___जसहरचरिउ-यह भी एक खण्डकाव्य है। जो पुष्पदंत द्वारा रचित है। इस ग्रन्थ की रचना का मुख्य उद्देश्य हिंसावृत्ति का निवारण और अहिंसा का प्रसारण है। इस उद्देश्य को सफल करने के लिए ही यशोधर के चरित की कथा कही गई है। इसमें मात्र चार संधियां हैं। __ भविसयत्तकहा-यह कवि धनपाल की एकमात्र कृति है। धनपाल दिगम्बर जैन मत के अनुयायी एवं धक्कड़ वैश्य थे। धनपाल का विशेष परिचय प्राप्त नहीं होता है। लेकिन उनके पिता के नाम माएसर (मातेश्वर) एवं माता का नाम धणसिरि (धनश्री) था, जिसकी पुष्टि ग्रन्थ की प्रशस्ति के अन्त से होती है धक्कड़ वणिवंसे माएसरहो समुत्मविण। धणसिरिहो वि सुतेण विरहउ सरसइ संभविण।। भ.क. 1/9 उनका स्थितिकाल विवादास्पद है। विद्वानों ने भाषा के आधार पर धनपाल का समय 10वीं शताब्दी माना है। डॉ. गुणे ने इस तथ्य की पुष्टि के लिए दो कारण दिये हैं-प्रथम भाषा के रूप में तथा दूसरा व्याकरण के विचार से। इनकी भाषा में शैथिल्य एवं अनेकरूपता के दर्शन होते हैं। इससे अनुमान किया जाता है कि इसकी रचना तब हुई होगी, जब अपभ्रंश बोलचाल की भाषा थी। हेमचन्द्र का समय 12वीं सदी है। तब तक अपभ्रंश रूढ़ हो चुकी थी। हर्मन याकोबी का भी यही मत है कि धनपाल का समय 10वीं सदी है एवं इसका आधार भाषा को ही माना है। प्रो. भायाणी के अनुसार भी धनपाल ‘पउमचरिउ' से प्रभावित थे। विशेषतः ‘भाविसयत्तकहा' के आदिम कडवकों में यह प्रभाव अधिक लक्षित होता है। इस दष्टि से धनपाल स्वयंभ के सिद्ध होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि धनपाल का समय लगभग 10वीं शताब्दी है। ____ 'भविसयत्तकहा' कथाकाव्य की यह विशेषता है कि इसमें कथानायक के रूप में कोई राजा अथवा राजकुमार को न लेकर साधारण वणिकपुत्र 'भविष्यदत्त' को लिया है, जिससे कथा में लोकचेतना की अभिव्यक्ति होती है। अतः धनपाल लोकहृदय के कवि थे। उन्होंने काव्य को मानव हृदय के अधिक निकट रखा है। डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री के अनुसार थोड़ी-सी अतिरंजना और धार्मिक अंश को छोड़कर उनकी रचना लोकदृश्य के बहुत निकट है। डॉ. विन्टरनित्ज ने 1. भविसयत्तकहा 9/20, 'भंजवि जेण दिगम्बरि लायउ', 2. अपभ्रंश साहित्य : परम्परा और प्रवृत्तियां, पृ. 29 3. अपभ्रंश और अवहट्ट : एक अन्तर्यात्रा, पृ. 71, 4. 'महाकवि धनपाल की काव्यप्रतिमा', डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा 'अरुण', पृ. 24, जैन विद्या, अंक-4, 'महाकवि धनपाल विशेषांक', जैन विद्या संस्थान, श्री महावीरजी स्वती
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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