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________________ वरंगचरिउ चहमुह-सयंभुवाण वण्णियत्थं अचक्खमाणेण । तिहुयण-सयंभु- रइयं पंचमिचरियं महच्छरियं । तावच्चिय सच्छंदो भमइ अवब्मस- मच्च-मायंगो । जावण सयंभुवायरण अंकुशो पडइ ।। सच्छद्द-वियड-दाठो छंदालंकार - णहर दुप्पिक्को । वायरण केसरडढो सयंभु- पंचाणणो जयउ ।। ( पउमचरिउ की प्रारंभिक प्रशस्ति) महापुराण-यह महाकवि पुष्पदंत की विशाल कृति है । यह कवि अपभ्रंश के द्वितीय महान कवि हैं। उनका भाषा पर असाधारण अधिकार था । वे जैनधर्म के बड़े श्रद्धालु और काव्यकला से भव्यों के चित्त को अनुरंजित एवं मुग्ध करने वाले थे तथा प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश भाषा के महापंडित थे। ये काश्यप गोत्रोत्पन्न ब्राह्मण थे तथा इनके पिता का नाम केशवभट्ट एवं माता का नाम मुग्धा देवी था। कवि पहले शैव थे, परन्तु बाद में किसी दिगम्बर विद्वान् के सान्निध्य में जैन धर्म का पालन करने लगे थे। वे स्वाभिमानी, धनहीन तथा दुर्बल शरीर के व्यक्ति थे। स्वयं कवि ने अपने को अभिमान मेरु, अभिमानचिह्न, काव्यरत्नाकर, कविकुलतिलक, सरस्वतीनिलय एवं कविपिसल्ल (कविपिशाच ) आदि उपाधियों से विभूषित किया है। इनके दो आश्रयदाता का उल्लेख प्राप्त होता है - प्रथम भरत एवं द्वितीय उनका पुत्र नन्न; क्योंकि इन्होंने भरत± के अनुरोध पर विशाल ग्रन्थ महापुराण का प्रणयन किया था एवं पुनः भरत के पुत्र नन्न के संरक्षण में 'णायकुमार चरिउ' और 'जसहरचरिउ' की रचना की थी। भरत एवं नन्न दोनों ही मान्यखेट और राष्ट्रकूटवंशी राजा कृष्णराज के अमात्य थे। महापुराण का रचनाकाल 965ई है। अतः महाकवि पुष्पदंत का समय 10वीं शताब्दी सिद्ध होता है। इनकी तीन प्रमुख रचनाएँ हैं - 1. त्रिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकार अथवा महापुराण, 2. णायकुमारचरिउ, और 3. जसहरचरिउ । महापुराण दो खंडों में विभाजित है - आदिपुराण एवं उत्तरपुराण । आदिपुराण में 37 संधियां हैं, जिनमें आदि ब्रह्मा ऋषभदेव का चरित वर्णित है और उत्तरपुराण की 65 संधियों में अवशिष्ट 23 तीर्थंकरों, 12 चक्रवर्तियों, नवनारायण, नवप्रतिनारायण आदि 63 शलाका पुरुषों का कथानक है। कुल संधियां 102 हैं, जिनकी अनुमानित श्लोक संख्या बीस हजार है । कवि ने यह ग्रन्थ शक संवत् 887 वि.सं. 1022 में समाप्त किया था । इसका सम्पादन डॉ. पी.एल. वैद्य ने किया है। 20 1. कसणसरीरे सुड्ढकुरुवे मुद्धाएविगब्भ संभूवे । कासव गत्ते केसव पुत्ते कइकुलि तिलयं सरसइ णिलएं । । महापुराण 38/4/2-4 2. तं णिसुणेवि भरहे वुत्तु ताव, भो कइकुल तिलय विमुक्कगाव । महा. 1/8/1
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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