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________________ वरंगचरिउ 19 जाता है, जिससे त्रिभुवन का जन्म हुआ था। कवि ने अपने दो आश्रयदाता का उल्लेख किया है-प्रथम धनंजय एवं द्वितीय धवल हैं। 'पउमचरिउ' की रचना धनंजय के आश्रय में और 'रिट्ठणेमिचरिउ' का प्रणयन धवल के संरक्षण में हुआ था। विद्वानों के अनुसार इनकी साहित्य साधना का केन्द्र ‘कर्नाटक' प्रान्त को माना गया है। इस कथन के पीछे यह तर्क है कि उन्होंने (महाकवि स्वयंभू) अपनी कृति 'रिट्ठणेमिचरिउ' में पाण्डवों, द्रोपदी एवं कुन्ती की तुलना गोदावरी नदी के सात-मुखों से की है। कवि गोदावरी नदी का वर्णन प्रत्यक्षदर्शी की भांति करता है। जिससे विद्वानों का अभिमत है कि ऐसी कल्पना एवं वर्णन कोई दक्षिणात्य ही कर सकता है। __ इन्होंने इन ग्रन्थों का प्रणयन किया है-1. पउमचरिउ, 2. रिट्ठणेमिचरिउ (हरिवंशपुराण), 3. स्वयंभूछन्द, 4. पंचमीचरिउ। पउमचरिउ एक विशाल प्रबंध काव्य है। इसमें पांच काण्ड एवं 90 संधियां हैं। पांच काण्ड इस प्रकार हैं-1. विद्याधर काण्ड, 2. अयोध्या काण्ड, 3. सुन्दर काण्ड, 4. युद्ध काण्ड, और 5. उत्तरकाण्ड । पउमचरिउ चरित प्रधान शैली का काव्य है। पुराणकाव्यों की विशेषता के अनुसार यह चरितकाव्य प्रश्नोत्तर के रूप में वर्णित है। जहां मगधराजश्रेणिक रामकथा के सम्बन्ध में उत्पन्न भ्रम को गौतम स्वामी के सामने प्रश्न के रूप में रखता है और वे उत्तर में कथा प्रारम्भ कर देते हैं। कथा का प्रारम्भ अयोध्याकाण्ड से होता है। विभीषण को महंत सागरबुद्धि से यह सूचना मिलती है कि राम-रावण का वध करेगे। इसकी प्रतिक्रिया में वह दशरथ और जनक के वध का असफल प्रयत्न करता है। कथा जैनधर्म के अनुकूल आगे बढ़ती है। इसके सभी प्रमुख पात्र जैनधर्म में दीक्षित हैं। रिट्ठणेमिचरिउ (हरिवंशपुराण) यह पुराणकाव्य पउमचरिउ से भी विशालकाव्य है, जिसका वर्णन 112 संधियों में प्राप्त होता है। इसमें जैन-परम्परा के बाइसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) तथा कृष्ण एवं कौरव-पाण्डवों की कथा वर्णित है। सम्पूर्ण कथा को चार काण्डों में विभाजित कर पुराण काव्य की विशेषता अनुसार प्रश्नोत्तर में कही गई है। वह चार कांड इस प्रकार हैं-1. जादव कांड, 2. कुरु कांड, 3. युद्ध कांड और 4. उत्तरकांड। __ग्रन्थ का आरम्भ कवि ने आत्म-निवेदन और विषय की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए किया है। कथा का आधार कुछ परिवर्तनों के साथ महाभारत और हरिवंशपुराण को भी बनाया गया है। स्वयंभू छन्द-यह स्वयंभू की छन्द विषयक महत्त्वपूर्ण कृति है। यह अपभ्रंश को बहुत ही महत्त्वपूर्ण देन है। यह ग्रन्थ प्रो. वेलंकर द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुका है। इसमें प्राकृत और अपभ्रंश के छन्दों का अनेक कवियों की कृतियों के उदाहरण के साथ विवेचन किया गया है। ____उक्त तीन कृतियों के अतिरिक्त स्वयंभू की दो अन्य कृतियों के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं-पंचमीचरिउ एवं कोई व्याकरण ग्रन्थ। यद्यपि ये ग्रंथ अनुपलब्ध हैं, किन्तु पंचमीचरिउ की अंतिम प्रशस्ति में इनका संकेत इसप्रकार प्राप्त होता है
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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