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________________ 136 वरंगचरिउ 12 दुवई - ण मुणमि कवणु ताउ तुह केरउ मायरि कवण जायउ । को वरणयरु वप्प कमलाण ण कहि कारण परायउ ।। छ । । पद्मं पोरिसु दरसिउ जगि सारउ । सुंदरतणु समरंगणि णिरसिउ । वणदुहेण सो मुच्छ परायउ । णयणंसुयइ मुयंतउ रोयउ । हि वणिवरगणु समरि सहारिउ । इक्कवार मइ गिर तुह अप्पाहि । धरणि म सोवहि महु दुह आयउ । मलयागिर सित्तउ सुउ महिवइ' । भेसह दिण्णिय तिवडुय' जोयउ । उट्ठउ जण-मण णयणाणंदणु । गाढालिंगणु कियउ कुमारउ । लहु दिवसहि हुय सार रवण्णउ । भइ से इहु लेहि महाबलु । मइ अप्पिउ तुह गिन्हि कुमारा । कुसलु-कुसलु पइं' वयणु पउत्तउ । मज्झिमु धण समाण पोसिज्जइ । सज्जणचरिय वि लीणउ । मुमि इक्क वरवंसु तुहारउ इय वयणहि वणिवइ सुपसंसिउ रुहिरारुणवरंगु संजायउ पिच्छिवि उवहिविद्धि मणि सोयउ हा विहि किं पर एसिउ मारिउ हा हा पुत्त - पुत्तकिं तप्पहि सुय उद्दुट्ठ देहि महु सायउ इय जंपंतह वयणइ वणिवइ सीयलु चमराणिलु पुणु ढोयउ लहिवि सचेयभाउ णिवणंदण तो पुणु हरसिउ वणिवर सारउ वरतणु अंग भेसहो° दिण्णउ पुणु धण - धण्ण-सुवण्ण समग्गलु अवरु वि मणि रयणइ अइसारा इयमुणेवि पुणु वरतणु वुत्तउ धण दाणइ अहम्मु तोसिज्जइ घत्ता- जो उत्तमु परउवयारहिउ सो हियमियवयणिहि तोसियइ वसु ण लेमि तुह दीणउ | दुवई - पभणइ सेट्ठि" मज्झ तडि अच्छहि परउवयार भायणो । लच्छि ण गहइ सइ जि अप्पंतह इहु को सच्चरायणो ।। १२ ।। 2 12.1. A, कारण 2. N, विणिव‍ 3. K, महिवई 4. A, वडुया K, वडूया 5. A, K, N, अंगई 6. N, भेसेहो 7. K, दिण्णउ 8. K, सेठि 9. N, पइ 10. N, तेसिज्जइ 11. N, सेठि
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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