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________________ 130 वरंगचरिउ हणु-हणुः सद्दइ दिग्गइ तासिय णिव कुमारि वणिगण आसासिय। लेहु लेहु सवरेसु वियारमि महाकालु जममुहि पइसारमि। तासु पुत्तु कालु वि रणि भंजमि जय पाविवि वणिवइ मणु रंजमि । इय वयणहि भडसम्मुह धाइय जे भय भग्ग ते पुणु आइय। वरतणु सद्दु सुणिवि वलदुद्धरु इहु गोहाण गोहु कय संगरु। वाणावलि पाडिउ रिउ वसुमइ वणियरगण ताडिय पहु वसुमइ । भिडिय सरोसइ विण्णिवि सेणइ विण्णिवि बल मिल्लहि सर सेणइ। समरु महंतु तित्थु संजायउ वरतणु उप्परि समरु परायउ। कालु णामु महकालहो णंदणु भिडइ सरोसउ पियमणणंदणु। अगणिय साययेहि मिल्लंतउ अइरोसारुण णयण फुरंतउ। घत्ता- सो पिक्खिवि दुद्धरु, समरु तहि कोह हुयासणि पजलिउ। पभणइ रे दुट्ठ काल णिसुणि मरहि म तुह पोरिसु कलिउ ।। दुवई- मा वुड्दुहि अयालि रे पाविय महु असि उवहि दुग्गमे। गच्छहि सिग्घु-सिग्घु णियभवणइ समुह मएहि पयगमे ।।८।। 9 मा भिडहि' समरि लइ अभयदाणु मइं पइं दिण्णउ कय जीवत्ताणु। णियपिय रंडत्तणु णउ करेहि गच्छंतउ णियजीविउ धरेहि। कय दिण सीयलजलु साउ लेहिणियपिय जणणिहि जाइ वि मिलेहि। मा मरहि मरहि रे दुट्ठ पाउ हउं मुणमि पत्तु पई धम्मराउ। पइ उद्दालिय वहुपत्थ आसि एवहि तुह तणु घल्लमि हुयासि । जइ गच्छहि वम्मह' लोइ सरणु अह करहि धिट्ठ पायालि गमणु। सुरणरविज्जाहर सरणि जाहि पत्थोयणिहिहि पइसहि अगाहि । तो विण छुट्टहि रे समरकालु तुह इत्थ पहुत्तउ पलयकालु । इय वयण सुणिवि कोहेण जलिउणं उग्घय सित्तिउ जलणु जलिउ। जं पइ अजुत्त वयणइ किराउ णउ मुणइ पत्तु महु अज्जु आउ। रे रे किं झंखहि अहलवाय किं ण मुणिउ दुद्धरु मज्झु ताय । 2. A, K, हण्णु 3. A, णिवं 4. K, आगणिय 5. A, अइरों° 9. 1.N, भिडहिं 2. N, पइ 3. A, पत्थ K,पंथ 4. A, K, N, वम्महं 5. A, K, N, पात्थोय' 6. K, अगहि 7. N, ण 8. K, 'वाया
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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