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________________ 126 वरंगचरिउ सिरीसुवण्णु जं जं तुहु मग्गमि तं तं तुज्झु सयलु हउं अप्पमि। इय गिराइ अइकरुणइ भरियउ दुहु अप्पणउ' सव्वु वीसरियउ। पावण जलहि सणाणुः करेप्पिणु धोयं वरइ अंगि धारेप्पिणु'। पंचणमोयारई जलि सित्तउ णं अहिगरलु हुयासणि पित्तउ। लहि विसचेयणु सवर समुट्ठिउ वंधवपियजणणिहि कय तुहिउ। तहि अवसरि किरायगणु जंपइ पई सरिसउ अवरु वि को संपइ। पुणु वि कुसुंभुराउ पयलग्गउ अवियाणिय दयधम्मह मग्गउ। मणि-सुवण्ण-कुंदुज्जल-वत्थइ मिल्लिवि कुमरहो पुरइ पयत्थइ । लइ लइ सुंदर जं तुह रुच्चइ तं णिसुणिवि णिवणंदणु वुच्चइ। धनदाणु वि धण लुद्धउ इंछइ पयणिहि किं घणयागमु वंछइ। अहवा धणु लेप्पिणु' कहि रक्खमि वणिहं ठमि सुमहुरफल भक्खमि । दबु ण गिण्हवि दव्वह वहु रिउ इय भणेवि सुंदरु पुणु विहरिउ। पहि जं तह दिणयरु अत्थमियउ भूरुह चडिवि रयणि तहि गमियउ। सुह दुहु चिंतिउ तेण चिराणउ उयए सूरि संचल्लिउ राणउ। जंतु जंतु संपत्तउ तित्तहि वणिवरगणु आवासिउ जित्तहि। वणि वरेहि दरसिवि सो गहियउ को तुहु कवण देस आगइयउ। अह केणवि महिवइ पेसिउ चरु सुणिवि एम सो णउ अप्पइ सरु । तो कडुयक्खरेहि पुणु ताडिउ । खलवणिवर चरेहि पुणु पीडिउ । पुणु मिलेवि करमुट्ठीहि घायउ तो विण वुल्लइ पहुतणु जायउ। सुंदरु संतु भणिवि पुणु रक्खिउ परसुप्पर सयलहि पुणु अक्खिउ। गहिवि लेहु वणिवइ दरसावमि इहु महंतु को णउ आयावमि। घत्ता- कुमरवरंगु लएवि, सायर विद्धि" पहाणउ । सयलहि अप्पिउ तासु पिक्खहि सुंदरमाणउ ।। दुवई- अवलोएवि सेठि पुणु चिंतइ महु याणंदयारउ । ___ रक्खमि इत्थु देमि वरभोयणु, वरतणु पुरिससारउ ।।६।। 6. 1.K, अप्पणउं 2. K, सण्णाण्णु 3. A, K,घोयं 4. A, N, धारेपिणु 5. K,पंचणमोयारइं 6.N, सितउ 7. A, K,N,लेपिणु 8. A,K, इव्वह 9. K, N, संपत्तउं 10. K, तुहं 11. K, विद्धिं, A,N, विहि
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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