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________________ 104 वरंगचरिउ घत्ता - परमुद्धा मेलउ, रमणहर कीलउ, खणमेत्तु वि सुहयारउ । पच्छइ दुहु दारणु, णरयहु कारणु, पावइ जीउ असारउ ।। १३ ।। 14 परतिय णरयजोणि दरिसावइ परमुद्धासत्तउ जणु जाणइ अहवा जइ जगतीवइ णिसुणइ खररोहणु करेइ णिवाडइ अहवा जइ पुहवइ ण वियाणइ जइ पुणु कंतु णियच्छइ जारहो इय दुक्खइ सहेइ जइ पावइ जिम जिम पररमणी मणि झावइ आकंदइ पिक्खिवि तियभूसणु जिम जिम सालंकार पलोय * परवणिया वयणुल्लउ पिक्खइ सो किं पावइ पुण्णविहीणउ परवणिया परिणाम करतउ पाउ महंतु सो जि उप्पावइ परतिय लंपडु दहमुह जायउ तेण हरिय कलत्त वलहद्दहो पंकपहाहि पत्तु सो रावणु कीयकु हणिउ भीमिवलवंतए परमहिला जमउरि पहि लावइ' । अजसकित्ति लोउ वक्खाणइ । करचरणाइसीसु आणि हणइ । वसु अवहरइ वयण पुणु ताडइ । थरहरंतु परभामिणि माणइ । जीवयव्वु अवहरइ सुसारहो । अलहंतउ विरहाणलु तावइ । तिम तिम मयणु देउ' वहु आवइ । रु अलहंत इंदियपोसणु । तिम तिम कामिउ णियमणि रोवइ । तो तणरमणु वाउ परिसिक्खई" । कम्मवसेण जाउ णिहि हीणउ' । कामिउ झूरइ चित्ति धरंतउ । णरयावणिणिवासु धुव पावइ । तिक्खंड राउणु विक्खायउ । सो हिणिउ अट्टमइ जणद्दहो । दोवइ कारण अवरु भयावणु । णियवंधव तियदोस वहंतए । घत्ता - इय मुणिवि णरेंद, कुवलयचंद, परतिय णेहु ण किज्जइ' । मणवयणतिसुद्ध, परिणियसुद्ध, णियमणु संतोसिज्जइ । । १४ । । 15 जिह वज्जिज्ज पररमणि राउ परपुरिस रमणि' दासीसमाणु इक्किक्क वसण सण्णिहिय चित्त जो सत व वसाइ स्तु महुमज्जमंसपंचुंवराइ तिह तिय वज्जहु परपुरिसभाउ । णरसरिस दोस जंपिउ पमाणु । ते कालें कवलिय दुक्ख पत्त । तो दुह अक्खइ सरसइ सुवत्तु । परिवज्जहु सावय वय धराइ' । 3.ए रमणहं 4.।ए ज्ञए नं.13 की जगह 12 नं. लिखा है। 141. K, लवइ 2K, कतु 3. A,K, N,देइ 4.A,K,N पलोवइ 5. K,°सिक्खई 6. K, णिहिणउ 7. K, कीज्जइ 8. A, N, मुद्ध 151. A, रमिणि 2. A, घराइ K, वराइ
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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