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________________ 105 वरंगचरिउ है । शिवभूति ब्राह्मण लोभ से व्याकुलित हुआ और रत्नादि कल्पित नहीं हुए, फिर भी कुगति में गिरता है । इस प्रकार जान करके उसका त्याग करना चाहिए और त्याग के द्वारा सार्थक कार्य प्रवृत्ति लगाना चाहिए । घत्ता - (दूसरे) परस्त्री से मिलता है, रमण की क्रीड़ा करता है, यह क्षण मात्र ही सुखकारक . है, पश्चात् अत्यधिक दुःख एवं नरक का कारण हैं और जीव असारता को प्राप्त करता है । 14. परस्त्रीसेवन व्यसन स्वरूप परस्त्री नरकगति को दिखाने वाली है और वह यमपुरी के मार्ग में लाती है। परमुग्धा में आसक्ति लोग जानते हैं, जिसका अपयश और अकीर्ति लोक में प्रसिद्ध है। यदि राजा सुनता है तो व्यभिचारी के हाथ, पैर और सिर छिन्न-भिन्न करने की आज्ञा देता है, गधे पर सवार करके नगर से निष्कासित करता है, उसकी सम्पत्ति (धन) का अपहरण करता है और वचनों से ताड़ित किया जाता है अथवा यदि उसका पति व्यभिचारी को देख लेता है तो वह भलीभांति उसके जीवन का अपहरण करता है । यदि व्यभिचारी परस्त्री को प्राप्त करता है तो इस प्रकार उक्त दुःखों को सहन करता है । यदि प्राप्त नहीं करता है तो विरह की आग में तपता है। जैसे-जैसे परस्त्री का मन में ध्यान आता है, वैसे-वैसे कामदेव अत्यंत पीड़ित दिखाई देता है। परस्त्री के आभूषणों को देखकर क्रन्दन-सा करता है, मनुष्य इन्द्रिय की तृप्ति नहीं कर पाता है। जैसे-जैसे उसको अलंकार सहित देखता है, वैसे-वैसे कामी पुरुष अपने मन में रोता है। परस्त्री के वचनों को सुनता है और उसके तन की सुगंध की हवा से सुख महसूस करता है । वह पुण्यहीन क्या प्राप्त करता है, कर्म के वश में होकर अपने खजाने को नष्ट करता है। परस्त्री के प्रति अपने परिणाम को करते हुए कामी-पुरुष कुटिलता (टेढ़ापन) को चित्त में धारण करता है और कामी पुरुष महान-पाप उत्पन्न करता है जो नरक रूपी वन में ध्रुव रूप से निवास करवाने वाला है । परस्त्री की लंपटता को धारण करने वाला दशानन हुआ, जो त्रिखंड का अधिपति रावण नाम से विख्यात है, उसने बलभद्र की पत्नी को हरण किया, वह अष्टम जनार्दन ( नारायण लक्ष्मण) के द्वारा मारा गया और उसने नरक को प्राप्त किया। दूसरा, द्रोपदी के कारण भयंकर परिणाम हुआ, बलवान भीम ने कीचक का वध किया और अपने परिजनों के लिए स्त्री-दोष का वहन किया । घत्ता - हे नरेन्द्र ! पृथ्वीमंडल के चन्द्र इस प्रकार जानकर परस्त्री में प्रेम नहीं करना चाहिए। मन, वचन और काय की शुद्धिपूर्वक विवाह कीजिए और अपने मन में संतोष को धारण कीजिए । 15. पर - पुरुष सेवन और रात्रिभोजन का त्याग जिस प्रकार परस्त्री में रमण करने के राग को वर्जित (निषेध) किया गया है, उसी प्रकार स्त्री के लिए परपुरुष के प्रति रमण करने के भाव का निषेध है। परपुरुष में रमण दासी के समान
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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