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________________ 96 वरंगचरिउ गुणदेविहि संतोसु वि जायउ णववहुयइ पिक्खिवि अणुरायउ। कुमरु वि रइविलासु भुजंतउ तित्थु जि अच्छइ हरिसु जणंतउ। विद्दुमाइं सरसाहर चुंवइ णियभुयाइ णारी अवरुंडइ। कट्ठिणपयोहराई करपीडइ रमणी सहु सिज्जायलि कीडइ। अच्छइ णियकामिणि अणुरत्तउ पररमणीय ण चित्त वि रत्तउ। णियकामिणिहि मालउ परिघल्लउ परणारी सहु वयणु ण वुल्लइ। णियरमणिहि तंबोलु समप्पइ पररमणी सहु णेहु ण अप्पइ । णियसीमं तिणिभोय कयायरु इम अच्छइ पररमणी भायरु। घत्ता-हरिकुलणहं इंदु, णिहणियतंदु, सुह भुंजंतु वि अच्छइ। जिणवरपयभत्तउ पियसंजुत्तउ, तायहो आण पडिच्छइ।।।। 9 इक्क दिवसि महिवलय गरिट्ठउ धम्मसेणु णियसहहि परिट्ठिउ। पडिहारें विण्णवियउ चंगउ पयपोसइ अरितिमिर-पयंगउ। णिसुणहि णरवइ महु वयणुल्लउ वारि तुहारइ अच्छइ भल्लउ। लय-सुमण-सवणवालु परायउ हरिसवंतु रोमंचिय कायउ। तुह आएसु होइ ता आणमिणं तो वयणहि तित्थु समाणमि। रायइ भणिउ सिग्घु आणिज्जइ जं पभणइ' तं वयणु करिज्जइ। पडिहारें अक्खिउ वणवालहो तुह वुल्लाविउ लहु महिपालहो। तो वणपालु परायउ तित्तहि धम्मसेणु अच्छइ णिउ जित्तहि। पय पणविवि महिवइ विण्णत्तउ कुसुमकरंडउ अग्गइ घित्तउ। देव देव मुणिणाहु परायउ वरदत्तु वि गणहरु विक्खायउ। इय वयणहि णरवइ आणंदिउ सत्त पयहि जाएप्पिणु' वंदिउ। पढम परोक्ख विणउ मणि किद्धउ पच्छइ तूराणंदुवि दिद्धउ। पुरपरियणु सकलत्त लएप्पिणु' लइय पुत्त मणि भत्ति धरेप्पिणु।१० चलिउ वरंगु" वि परियण जुत्तउ हणियवेरि जिणधम्मासत्तउ। घत्ता- जाइवि मुणिवंदिउ, जगिआणंदिउ भत्ति धरेप्पिणु मणि पवरु। सुह-पहु-दरसावणु सिवगइभावणु णमियामर अवहीसयरु ।।६।। 6. A, रिघल्लउ 7. A, सहुं 8. A,K,N, अपइ। 9. 1. A,K,पभणइं 2. A, K, वुलाविउ 3. A, K, परायउं 4. K, महिवई 5. A, वीण्णत्तउ 6. A,K, आणंदेउ 7. A,K,N, जाएपिणु 8. A, परोखव 9. A,K,N, लएपिणु 10. A,K,N, धरेपिणु 11. N, वरगु।
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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