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________________ वरंगचरिउ 95 भी अंगदेश (वरांगदेश) के राजा विनयंधर है, यह महीपति कार्य में कुशल और धुरंधर योद्धा कहा जाता है, उनकी पुत्री प्रियकारिणी हुई मानो विधाता ने जिसे रतिवती दूती के रूप में निर्माण किया हो। इस प्रकार श्रेष्ठ आठ कन्याएँ हैं, जो जग में रूप-सौन्दर्य में सारभूत हैं, उनके साथ कुमार का विवाह किया जाये। देवसेन मंत्री कहता है कि शुभ मुहूर्त में सभी राजा भद्र (सज्जन) लगते हैं। इस प्रकार राजा (धर्मसेन) सुनकर कहता है कि यह कार्य शीघ्र ही अभी सम्पन्न करवाओ। तब राज्य और नगरों में सेवक भेजें। वे जाकर धृतिसेन को नमस्कार करते हैं और कहते हैं तुम्हारी पुत्री देवकुमार (वरांग) के लिए दीजिए। नरपति कहता है यह तो अत्यन्त सुन्दर है। मैं अपनी पुत्री कुमार के लिए देता हूँ। धर्मसेन के नगर में आऊँगा और शुभमुहूर्त में विवाह करेंगे। दूत भी लौटकर वहां आते हैं, जहाँ धर्मसेन प्रसिद्ध होते हैं। धर्मसेन कहते हैं-विचित्र और सुन्दर मंडप की रचना करके, कुमार का विवाह किया जाये। दूसरे दूत जहां-जहां भेजे थे वहां-वहां से वे कार्य करके आ गये। दूत राजा से कहते हैं- जिन राजाओं से आपके वचन कहे गये, उन सभी राजा ने सम्मान दिया। घत्ता-तब शुभ अवसर का शुभ दिन आया, रमणीय मंडप शोभित है। सम्पूर्ण नगर को रत्नों एवं नाना रंगों से सजाया गया। 8. विवाहोत्सव कुमार के विवाह के अवसर पर नारियां गीतों को गाकर आनंदित होती हैं, राजा अपने मन में आनंदित होता है। जैसे सिंह गज को जीतता है, वैसे ही कुमार वरांग रूप-सौन्दर्य में देव को जीतता है। नगर में किस-किसको उत्साह नहीं है? अर्थात् सभी उत्साह से परिपूर्ण हैं। आकाश गीतों के स्वरों से गुंजायमान था। राजा नगर में कुमार के साथ विवाह के लिए अपनी पुत्री को लेकर आते हैं। __शत्रुओं का घातक धृतिसेन (राजा) भी जिनदेव की भक्ति करके वहां पहुंचता है। दूसरे भी अपनी पुत्रियों के साथ आठ राजा वहां पहुंचते हैं। आश्चर्यपूर्वक! बहुत क्या कहूं| कुमार-वरांग का विवाह हुआ। वे नव परिणिता अप्सरा के समान सुन्दर रूप वाली और दूसरी एक वणिक पुत्री भी गृहिणी (पत्नी) हुई। जो-जो राजा जहां से आये थे, वे-वे अपने-अपने नगर में लौटे। गुणदेवी में नववधुओं को देखकर संतोष एवं अनुराग उत्पन्न हुआ। कुमार रतिप्रमोद भोगते हुए वहां पर हर्षित हुआ। वह कुमार प्रवालमूंगा की तरह नववधुओं के सरस अधरों का चुंबन करता है, अपनी भुजाओं में स्त्री को आलिंगित करता है। उन्नत स्तनों को हाथों से सहलाता है, अपनी स्त्री के साथ शैय्या (पलंग) पर क्रीड़ा करता है। अपनी स्त्री में अनुरक्त होता है, किन्तु परस्त्री के साथ
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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