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________________ 92 वरंगचरिउ रायं पिक्खिवि णंदणु वियड्ढ चिंतइ परिणाविज्जइ गुणड्ड। अवलोइज्जइ कहु तणिय पुत्ति दूउवि पडवियइ कहि दवत्ति। इत्तहि इक्कुवि वणिवइपहाणु अक्खइ सुणि हरिकुल गयणभाणु । धियसेण" णरिंदहु तणिय धीय भूवें रइपिय अह णाइ सीय। सा मग्गिवि किज्जइ सुयविवाहु राय उच्चरियउ साहु साहु। सम्माणु-दाणु कय णिहयतंदु राय पट्टवियउ वणिवरेंदु। इत्तहि सह मज्झि वइट्ठ राउ मंतिय परिपुच्छह मंतभाउ । घत्ता- भो! मंति वियक्खण, भूवसलक्खण, कुमरिवरंग समाणिय। कहु णंदिणि लिज्जइ, विणउवहिज्जइ अक्खहु बुद्धि" चिराणिय ।।५।। 6 तं णिसुणिवि भणइ अणंतवीरु णिव णिसुणहि अक्खरमि सुहडधीरु'। ललिताहणयरि सुरसेणु राउ अरियण-सिर-सेहरि-दिण्णघाउ। तहो गिहि सुणंदा कुमरिणाम तहो करि लाइज्जइ रुवसाम। अवरु वि सुरसेणहु भाइणेहु जुत्तुवि परिवठ्ठइ चिरुसणेहु। तं वयाणाणंतरि लवइ अवरु णामणज्जियउ सुबुद्धि पवरु। पई भणियउ चंगउ वयणु' येहु परअण्णु वि किज्जइ णवसणेहु। पुणु चित्तसेणु भासइ सुवाय सुरसेणहु किज्जइ णेहुराय। पुणु देवसेणु तुरियउ पवुत्त हउँ अक्खमि किज्जइ अवरुवत्त। माहेंददत्त-बंधवरि-राउ अंगवइणाम तहो पुत्तिजाउ। सीहउरणराहिव तणिय पुत्ति णामेण जसोमइ कामसत्ति। पुरमलयणरेंदु वि मयरकेउ हुय धीयाणंतसिरी सुतेउ। पुरिइट्ठ महीवइ सणकुमार तणया वि वसुंधरिरुवसार। पुरचक्क पयोणिहिदत्त राउ पियवत्ता पुत्तिय तासु जाउ। गिरिवज्जणयरि णं सुरवरेंदु वज्जायहु णामें णरवरेंदु । तहो पुत्ति सुकेसीकमलवत्त सुरु छंडिवि णं रइ इच्छु' पत्त। घत्ता- वरणयरसुकोसल,जणपयकोसल,पयडु धरायलि राणउ। अरि-गिरि सोयामणि, तेयइ दिणमणि, मित्तु सीहु अहिहाणउ ।।६।। 7. A, वियदु 8. K, चिंतवइ 9. K, °बियइ 10. A,K,N, दवत्ति। 11. A,K,N, धियखेण 12. A, धीव 13. A, K,N, रायं 14. A,K,N, रायं 15. A, पट्टविय 16. K, पुछइ 17. A, बुद्धि । 6. 1. A, K,N, धीर 2. K, N, प्रति में सुरसेण का अपरनाम देवसेन दिया हुआ है। 3. A, K, N, गेहि 4. A, K, N, तंब्वाया 5. A, N, सुर्बुद्धि 6. A, पइ 7. K,N, बयणु 8. A, हउ 9. A, वंधवरि 10. K,N, सुर 11. K, इछु।
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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