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________________ वरंगचरिउ ____4. कंतपुर का वर्णन एवं राजा धर्मसेन नगर में मानो श्वेत एवं उज्ज्वल चन्द्रमा की चांदनी बिखेर दी गई हो, मानो इस अवसर पर दूध का खजाना धारण किया हो। वहां की इमारतें (मकान) पर्वत के समान दीर्घ एवं ऊँचे थे एवं ऐसा प्रतीत होता है जैसे नभतल (आकाश) को छू रहे हों। नगर के बाहर जो खाई (परिहा) थी जिसको पार करना स्त्री के चित्त (मन) को जानने जैसा कठिन है। आचार से युक्त चित्त चावल की तरह शोभित होता है। घर-घर में दरवाजे पर मालाएँ डोल रही हैं, घर-घर में मोतियों का चूर्ण पूरा गया है, प्रत्येक घर के द्वार पर कुंकुम एवं जल छिड़का गया है, जो शोभा से शोभित एवं रमणीक है, जहां स्त्रियों के नेत्रों में वक्रता रहती है एवं उनके स्तन मलिनता से युक्त होते हैं। नगर के बाहर (नगर के चारों ओर) अंगूर, खजूर, नींबू, इलायची, सुपारी और लोंग के श्रेष्ठ वृक्ष हैं, ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वर्गलोक का पृथ्वी तल पर आगमन हुआ हो। जहाँ नित्य ही दुंदुभि आदि वाद्ययंत्रों का नाद (स्वर गूंजना) होता है, जहां जिनवर (जिनेन्द्रदेव) का श्रेष्ठ मंदिर है, जिसमें हमेशा श्रेष्ठ भक्तगण (भविजन) दर्शन करने आते हैं। वहां के महाराजा धर्मसेन हैं जो शत्रुओं का दमन करने में सिंह के समान हैं। वे जग में प्रसिद्ध कामदेव के समान सुन्दर हैं। जो दयाधर्मभाव के पुंज (समूह) हैं, जो लाखों (अनेक) लक्षण से सहित गुण-सिन्धु हैं। चोरी और व्यभिचार का जिन्होंने हनन करके मनुष्य का उद्धार किया है। जो दीनों और अनाथों के लिए कल्पवृक्ष की तरह हैं। शत्रुरूपी कामयुक्त स्त्री के हृदय को दुःख देने वाले हैं। जिस प्रकार देवताओं का प्रधान इन्द्र होता है, उसी प्रकार मनुष्यों में श्रेष्ठ राजा धर्मसेन हैं। . घत्ता-हरिवंश में जिसका वर्णन है, जो दुष्ट नीतियों का नाश करने वाला भोजराजा का पुत्र नंदन है, प्रिय एवं नयनों को आनंदित करने वाली राज्य की प्रधान रानी गुणदेवी है। 5. रानी मृगसेना एवं पुत्र सुषेण दूसरी पत्नी के रूप में मृगसेना हुई। आगे इस प्रकार राजा धर्मसेन की 300 पत्नियां हुईं। वे संतप्त सोने की प्रभा की तरह सुन्दर शरीर वाली, मृग के समान नेत्रों वाली एवं श्रेष्ठ शोभा से अलंकृत थी। वहां राजा विषय सुख भोगते हुए कार्य विशेष को थोड़ा भी नहीं जान पाया कि काल व्यतीत हो गया। मृगसेना के यहां सुषेण नामक पुत्र का जन्म हुआ। वह बालक कला आदि गुण-विज्ञान में कुशल हुआ। गुणदेवी से वरांग नामक पुत्र का जन्म हुआ। जिस प्रकार चन्द्रमा की कलाएँ वर्धित होती हैं, उसी प्रकार वह नूतन-बालक वर्धित हो रहा था। उनके अन्य पुत्र भी अत्यन्त सुन्दर थे। कुमार वरांग ऐसे शोभायमान हो रहा था, जैसे आकाश में तारा-समूह के बीच चन्द्रमा सुशोभित होता है। काल व्यतीत हुआ और उसका यौवन आया। राजा की देखरेख में पुत्र .
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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