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________________ किया गया है। दूसरे उल्लास के सोलहवें गीत में वि.सं. १९७० से १६७८ के बीच हुई दीक्षाओं का संकलन किया गया है। इतिहास की दृष्टि से दीक्षा-विवरण का यह क्रम बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक-एक वर्ष में कब, कहां, किसकी दीक्षा हुई ? यह पूरा विवरण यहां उपलब्ध है। ___वि.सं. १६७४ एवं १६७५ में प्लेग की बीमारी फैली। लोग मरने लगे। अनेक गांव एवं शहर खाली हो गए। इस प्रसंग में लाडनूं में स्थित साध्वियों के सेवा केन्द्र को स्थानान्तरित करने का प्रसंग उपस्थित हो गया। किन्तु उस प्रसंग में गणेशदासजी चण्डालिया आदि अनेक परिवारों ने साहस का परिचय दिया। उन्होंने कहा-'साध्वियां यहां रहेंगी तो हम गांव छोड़कर नहीं जाएंगे।' साध्वियां वहीं रहीं। उस दृष्टि से लाडनूं रहने वाले परिवारों में एक भी व्यक्ति महामारी की चपेट में नहीं आया। यह वर्णन भी प्रस्तुत उल्लास के अन्तिम गीत में है। कालूयशोविलास का दूसरा उल्लास कालूगणी की सैद्धान्तिक चर्चाओं, मारवाड़, मेवाड़, थली एवं हरियाणा की यात्राओं, कतिपय विद्वानों के सम्पर्क तथा नाबालिग दीक्षा से सम्बन्धित बिल के प्रसंग में रही श्रावकों की जागरूकता के विवरण से बहुत समृद्ध बन गया। ग्रन्थकार ने इतिहास के हर उल्लेखनीय प्रसंग को काव्य की भाषा में आबद्ध करने में अपनी विशिष्ट प्रतिभा का उपयोग किया है। तृतीय उल्लास तीसरे उल्लास का प्रारंभ पिछले दो उल्लासों की तरह संस्कृत श्लोक से हुआ है। इसमें कालूगणी के मुख को चन्द्रमा और कमल से उपमित किया गया है। कालूगणी के आख्यान कालूयशोविलास को उद्यान का प्रतीक बनाकर कवि ने स्वयं को भ्रमर रूप में रूपायित किया है। __ मंगल वचन के आठ श्लोकों में भगवान महावीर की वाणी का वैशिष्ट्य बताया गया है। भव्य जनों को आनन्दित करने वाली, गूंगे व्यक्ति को वाचाल बनाने वाली, विरोधी प्राणियों के द्वेष भाव को विस्मृत कराने वाली, सब प्राणियों को अपनी-अपनी भाषा में समझाने वाली अर्द्धमागधी भाषा में भगवान प्रवचन करते थे। तीर्थंकरों की वाणी के पैंतीस अथवा संख्यातीत अतिशय हैं। अर्हत-वाणी के प्रभाव से बड़े-बड़े संकट टल जाते हैं, इसीलिए उसका इतना महत्त्व बताया गया है। __तीसरे उल्लास का प्रथम गीत बीकानेर-प्रवास से शुरू हुआ है। कालूगणी ४० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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