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________________ ने चतुर्मास के लिए बीकानेर शहर में प्रवेश किया। उस समय वहां के प्रतिपक्षी लोगों की मानसिकता का आकलन कर कालूगणी ने सोचा- 'यहां के विरोधी लोग कुछ-न-कुछ उदंगल करते रहेंगे। संभव है, वे उन उदंगलों को धर्मयुद्ध का रूप दें। हम पर कोई युद्ध थोपेगा तो हमें उसका मुकाबला करना होगा। उसके लिए हमें अपना शस्त्रागार भरना होगा। क्योंकि आक्रमण का जवाब दिए बिना विजयदुन्दुभि नहीं बज सकती। हमारे लिए क्षमा तलवार है, धर्म ढाल है, शास्त्र शस्त्र हैं, अर्हत्-वाणी कवच है और मुनिगण सेना है।' इस चिन्तन के साथ कालूगणी ने शिक्षारूप व्यूह की रचना की। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि सेनापति ने अपनी सेना को एकत्रित कर विशेष प्रशिक्षण दिया। उधर प्रतिपक्षी लोगों ने संघ और संघपति की निन्दा का कार्य शुरू कर दिया। इससे लाभ यह हुआ कि नहीं जाननेवाले लोग भी कालूगणी को जानने लगे। विरोधी लोगों ने तेरापंथ की मान्यताओं को तोड़-मोड़ कर भांति-भांति के पैम्फलेट एवं पोस्टर छपवाए और दीवारों पर चिपका दिए। कुछ लोग गली-गली में सभाएं आयोजित कर भाषण देने लगे। उनके भाषण सुनकर ऐसा लगता मानो होली खेलने वाले लोग बकवास कर रहे हैं। ऐसे कार्यों के लिए कुछ व्यक्तियों ने पानी की तरह पैसा बहाना शुरू कर दिया। प्रतिपक्षी लोगों की नाजायज हरकतें सहते-सहते तेरापंथ समाज के श्रावक अधीर हो गए। सुमेरमलजी बोथरा के नेतृत्व में उन लोगों ने मुकाबला करने का चिन्तन किया। बीकानेर के रांगड़ी चौक में दोनों पक्षों के लोग आमने-सामने होंगे, यह सूचना प्राप्त होते ही कालूगणी ने मुनिश्री मगनलालजी को संकेत किया। उन्होंने सुमेरमलजी को याद किया। वहां पहुंचते ही मगनमुनि ने उनको सामायिक का प्रत्याख्यान करवा दिया। सेना प्रतीक्षा करती रही, पर सेनानी की अनुपस्थिति में वह संघर्ष टल गया। कालूगणी ने सबको शान्त रहने का उपदेश देकर उनकी दिशा बदल दी। बीकानेर-नरेश गंगासिंहजी ने एकपक्षीय द्वेष और आक्रोश की बात सुनी। उन्होंने मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापंथ समाज के प्रमुख व्यक्तियों को बुलाकर इकरारनामा लिखवाया कि कोई भी सम्प्रदाय किसी अन्य सम्प्रदाय पर शाब्दिक आक्रमण नहीं करेगा। इकरारनामे पर उन सबके हस्ताक्षर हो गए। कुछ समय के लिए कलह शान्त हुआ। किन्तु फिर वही स्थिति पैदा हो गई। तेरापंथ के विरोध में निम्नस्तर के लेख, पैम्फलेट और पुस्तिकाएं मुद्रित करवाकर विरोधी लोगों ने सारी सीमाओं का अतिक्रमण कर दिया। तेरापंथी लोग सबकुछ देखते रहे, सुनते रहे। आखिर उपयुक्त अवसर देख कालूयशोविलास-१ / ४१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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