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________________ शास्त्रार्थ करने आए लोग न तो संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं के जानकार थे और न आगमों के रहस्य को समझते थे । फिर भी वे पूर्वाग्रह को छोड़ नहीं पाए । फलतः चर्चा लम्बी चली । भगवती, सूत्रकृतांग आदि आगम, उनके व्याख्या ग्रन्थ टब्बा, वृत्ति आदि के प्रमाण प्रस्तुत करने पर भी उनका आग्रह नहीं छूटा । उन्होंने बीकानेर से किसी पंडित को बुलाकर टीका का अर्थ कराने की बात कही । कुछ दिन बाद बीकानेर और भीनासर के लोग संगठित होकर कालूगणी के प्रवास-स्थल पर पहुंचे । कालूगणी द्वारा की गई जिज्ञासा के उत्तर में वे बोले - 'हम पंडित गणेशदत्तजी को साथ लेकर आए हैं । हमारी जो चर्चा पहले से चल रही है, उसी को सुनने के लिए सब लोग उत्सुक हैं ।' कालूगणी ने पिछली चर्चा का हवाला देते हुए पंडितजी को सूत्रकृतांग की वृत्ति का अर्थ करने का निर्देश दिया। इस पर प्रतिपक्षी लोग आनाकानी करने लगे। इससे कुछ क्षणों के लिए वातावरण अशान्त हो गया। उस समय कालूगणी ने विशेष शान्ति और धृति के साथ लोगों को समझाया और वातावरण को शान्त किया । पंडित गणेशदत्तजी इस बात पर अड़ गए कि उन्हें यहां वृत्ति का अर्थ करने के लिए बुलाया गया है, इसलिए सब लोग पहले अर्थ सुनें । पंडितजी ने आगम की छह गाथाओं की टीका पढ़कर उसका अर्थ किया तो वही बात फलित हुई, जो कालूगणी ने कही थी । इससे प्रतिपक्षी लोग कुछ उत्तेजित हो गए। उन्होंने पंडितजी को पुनः चिन्तनपूर्वक अर्थ करने का अनुरोध किया। पंडितजी ने इसकी अपेक्षा अनुभव नहीं की । उस समय जतनमलजी कोठारी बोले कि चालू चर्चा को छोड़कर नया प्रश्न उपस्थित किया जाए। इस पर कालूगणी ने कहा - 'एक प्रश्न का समाधान होने पर दूसरे प्रश्न पर चर्चा की सार्थकता है । - ' कोठारीजी ने उक्त प्रश्न पर अपनी हार स्वीकार करते हुए दूसरा प्रश्न उठाना चाहा । किन्तु बांठियाजी उसी बात पर अड़े रहे। कालूगणी बोले - 'हमने आगम के आधार पर प्रश्न का उत्तर दे दिया । उसे कोई स्वीकार नहीं करे तो हम क्या कर सकते हैं ?' बात समाप्त हुई और सब लोग चले गए । चातुर्मास का समय निकट होने से गंगाशहर, बीकानेर आदि क्षेत्रों के लोगों ने चातुर्मास की प्रार्थना की। बीकानेर में चातुर्मास की संभावना होने पर वहां के प्रतिपक्षी लोगों ने अपनी ओर से ऐसी योजनाएं बनाईं, जिससे वहां चातुर्मास हो । किन्तु कालूगणी ने बीकानेर का चातुर्मास घोषित कर पूरे ठाट-बाट के साथ प्रवेश किया। विरोधी लोग देखते रह गए। भीनासर की चर्चा का प्रसंग काफी लम्बा हो गया । तेरह से पन्द्रह तक तीन गीतों में विस्तार से उसका विवेचन कालूयशोविलास - १ / ३६
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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