SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनके बारे में हुए नकारात्मक चिन्तन की विषण्णता भी थी। विषाद को दूर करने के लिए उन्होंने सम्यक्त्वदीक्षा स्वीकार की और आत्मशुद्धि के उद्देश्य से साधुशतक की रचना की। पंडितजी ने कालूगणी के चरणों में अपना समर्पण प्रस्तुत करते हुए कहा- 'मैं हर समय हाजर हूं। आप जिस रूप में मेरा उपयोग करना चाहें, करें।' उसके बाद संस्कृत विद्या के विकास हेतु व्यवस्थित योजना बनाई गई। पंडितजी जब तक जीवित रहे, समय-समय पर अपनी सेवा देते रहे। चूरू के बाद कालूगणी कुछ क्षेत्रों का स्पर्श कर राजलदेसर पधारे। वहां उनकी एडी में व्रण हो गया। व्रण का इतना विस्तार हआ कि चातुर्मास वहीं करना पड़ा और आश्विन मास तक कालूगणी प्रवचन भी नहीं कर सके। आखिर मुनिश्री मगनलालजी ने एडी का आपरेशन कर पीव निकाली, तब पीड़ा का शमन हुआ। चतुर्मास के बाद चार महीनों तक पार्श्ववर्ती क्षेत्रों में विहार कर कालूगणी रतनगढ पधारे। वहां पंडित हरिनन्दनजी ने दर्शन किए। व्याकरण की चर्चा चलने पर पंडितजी ने भट्टोजी दीक्षित द्वारा रचित कौमुदी की प्रशंसा करते हुए कहा-'इस व्याकरण से सब शब्दों की सिद्धि हो जाती है। कालूगणी बोले-'शब्दशास्त्र का उद्देश्य शब्द-सिद्धि करना ही है, फिर भी कुछ शब्द छूट भी जाते हैं।' पंडित जी ने इस बात को स्वीकार नहीं किया, तब कालूगणी ने कौमुदी के आधार पर 'तुच्छ' शब्द सिद्ध करने का निर्देश दिया। पंडितजी ने समग्र कौमुदी का पारायण कर देख लिया, 'तुच्छ' शब्द की सिद्धि नहीं मिली। उन्होंने पूरी विनम्रता के साथ अपनी असमर्थता प्रकट की। ज्ञान का अहंकार हो तो वातावरण में कटुता घुल जाती है। पर पंडितजी में विद्वत्ता और विनम्रता का अद्भुत योग था, इसलिए वातावरण मधुर बन गया। कालूगणी और पंडितजी के बीच हुआ वह मधुर संवाद भी नौवें गीत में है। दसवें गीत में कालूगणी की हरियाणा यात्रा का वर्णन एक नई शैली में है। कालूगणी हरियाणा के छोटे-बड़े अनेक गांवों में पधारे। गांवों की जनता में उनके स्वागत-सत्कार का उत्साह और जैन सन्तों की चर्या से अपरिचित लोगों द्वारा की गई मनुहारों का रोचक वर्णन हृदयग्राही है। इसी प्रकार जब कालूगणी चातुर्मास करने के लिए भिवानी पधारे, उस समय स्थानीय लोगों ने अनेक प्रकार के साधु-संन्यासियों की जीवनशैली को सामने रखकर कालूगणी का अंकन सर्वोत्तम साधु के रूप में किया। इससे कालूगणी की महिमा में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। ग्यारहवें गीत के प्रारंभ में कालूगणी के व्यापक जनसम्पर्क की चर्चा है। उन्हीं दिनों महात्मा गांधी किसी कार्यवश भिवानी आए। वहां उन्होंने कालूगणी के कर्तृत्व की बात सुनी तो उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की। किन्तु कुछ ३६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy