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________________ राजनीतिक कारणों से वह मिलन-प्रसंग टल गया। भिवानी में तेरापंथ के आचार्यों का वह पहला चातुर्मास था। चातुर्मास के तीन महीनों में धर्म की बहुत अच्छी प्रभावना हुई। कार्तिक में दीक्षा का प्रसंग उपस्थित हुआ। एक भाई और तीन बहनों की दीक्षा घोषित हुई। दीक्षित होने वाली बहनों में एक कन्या थी। उसे निमित्त बनाकर विरोध का वातावरण बनाया गया। विरोधी लोग चेतुर्मास के प्रारंभ से ही विरोध का मौका खोज रहे थे। मौका मिलते ही उन्होंने जोर-शोर से दीक्षा के विरोध में आवाज उठाई। उस स्थिति में लाला द्वारकादास ने मुनिश्री मगनलालजी से निवेदन किया कि यदि दीक्षा का कार्यक्रम प्रवास-स्थल पर हो जाए तो विरोधी लोग कुछ नहीं कर पाएंगे। मुनि श्री मगनलालजी बोले-‘लालाजी ! तुम जो स्थान बताओगे, वहां दीक्षा हो जाएगी। दीक्षा के बाद चातुर्मास सम्पन्न होते ही हम तो यहां से चले जाएंगे, पर तुम भिवानी को छोड़कर कहां जाओगे ? लोग व्यंग्य करेंगे कि विरोध से घबराकर घर में दीक्षा दे दी। इससे तुम्हारा वर्चस्व कैसे रहेगा ?' । मुनिश्री मगनलालजी की प्रेरणा से भिवानी के श्रावक समाज में नया जोश भर गया। सब श्रावकों ने निर्णय लिया कि बाजार के बीच में डंके की चोट दीक्षा होगी। उधर विरोधी लोगों का रवैया आक्रामक होता गया। उन्होंने घोषणा कर दी कि जब तक भिवानी में छत्तीस हजार लोग हैं, तब तक कन्या की दीक्षा आकाशकुसुम बनकर रहेगी। क्योंकि वे उसे दीक्षा-मण्डप से उठाकर ले जाएंगे। कार्तिक कृष्णा अष्टमी को दीक्षा होने वाली थी। सप्तमी को रात्रि में विरोधी लोगों ने एक सभा आयोजित की। वे अपनी योजना प्रस्तुत कर उसकी क्रियान्विति का तरीका बताते, उससे पहले ही आकाश से एक सफेद गोला सभा के बीच में आकर गिरा। उसके कारण लोग इतने घबराए कि अपनी-अपनी जान बचाकर भाग गए। कुछ ही मिनटों में सभास्थल और सभामंच खाली हो गया। दीक्षा की समीक्षा धरी रह गई। दूसरे दिन बाजार के बीच में बिना किसी विघ्न-बाधा के कालूगणी ने दीक्षा-संस्कार सम्पन्न किया। पूरे शहर में धर्मसंघ की विशेष प्रभावना हुई। विरोधी लोगों के हाथ निराशा लगी। इससे उनके मन में प्रतिशोध की भावना जाग गई। संभवतः उसी प्रेरणा से किसी व्यक्ति ने कालूगणी के वेश की नकल कर शहर में नया उदंगल खड़ा किया। उस प्रसंग में यदि कालूगणी अपने श्रावकों को शान्त रहने का उपदेश नहीं देते तो भयंकर संघर्ष छिड़ जाता। किन्तु कालूगणी की दूरदर्शिता से सारा संक्लेश शान्त हो गया। यह पूरा प्रतिपाद्य ग्यारहवें गीत का है। कालूयशोविलास-१ / ३७
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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