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________________ गया है। कालूगणी की बहुश्रुतता देख प्रतापजी चकित, रह गए। दोनों यातियों ने भी इस यथार्थ को स्वीकार किया कि सिद्धान्तसार का सिद्धान्त भगवती के अनुरूप नहीं है, पर भ्रमविध्वंसन का अभिमत आगम-सम्मत है। आठवें गीत के प्रारंभिक दोहों में जोधपुर-चातुर्मास, लाडनूं के मर्यादा-महोत्सव और सरदारशहर-चातुर्मास का उल्लेख है। सरदारशहर में श्रावण मास में मुनिश्री मगनलालजी अस्वस्थ हो गए। डॉ. अश्विनीकुमार मुखर्जी के उपचार से वे स्वस्थ हुए। भाद्रपद मास में पूज्य कालूगणी बीमारी से बेहोश हुए तो संघ के होश उड़ गए। संघ की पुण्यवत्ता से वह बीमारी थोड़े समय बाद ही शान्त हो गई। उसी चातुर्मास में इटली के विद्वान डॉ. एल.पी.टेसीटोरी ने कालूगणी के दर्शन कर प्रसन्नता का अनुभव किया। चातुर्मास की सम्पन्नता के बाद कालूगणी चूरू पधारे। वहां रावतजी यति दर्शन करने आए। उन्होंने आशुकविरत्न पंडित रघुनन्दनजी की विलक्षण विद्वत्ता का परिचय दिया। कालूगणी को यतिजी के कथन पर विश्वास नहीं हुआ तो यतिजी ने पंडितजी को वहां उपस्थित करने का संकल्प व्यक्त किया। ___ यतिजी पंडितजी से मिले। उनको तेरापंथ और कालूगणी का परिचय देकर उनके पास जाने की प्रेरणा दी। पंडितजी को जैन साधुओं, विशेष रूप से तेरापंथी साधुओं के नाम से ही घृणा-सी थी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में वहां जाने का निषेध कर दिया। यतिजी के सामने दुविधा खड़ी हो गई। एक ओर कालूगणी का अविश्वास, दूसरी ओर पंडितजी का नकारात्मक भाव। यतिजी ने पंडितजी को छोड़ा नहीं। उन्होंने अनेक प्रकार से उन्हें समझाया और आखिर यहां तक कह दिया कि उनको कड़वी औषधि लेने की तरह एक बार तो कालूगणी के पास चलना ही होगा यतिजी के विशेष आग्रह पर पंडितजी बिना इच्छा कालूगणी के सान्निध्य में उपस्थित हुए। कालूगणी ने संस्कृत भाषा में वार्तालाप किया। पंडितजी अभिभूत हो गए। उनके मन में श्रद्धा जम गई। कालूगणी ने प्रथम साक्षात्कार में ही पंडित जी के पांडित्य को परख लिया। उन्होंने यतिजी को साधुवाद दिया और अनुभव किया कि ऐसे विद्वान व्यक्ति का सुयोग संघ के लिए बहुत ही हितकर होगा। यह समस्त विवेचन इतनी सरसता और सहजता से प्रस्तुत किया गया है कि पाठक को अपने साथ बहा लेता है। इस गीत में कुछ पद्य संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। कुल मिलाकर पूरा गीत एक नए इतिहास की दिशा में प्रस्थान का सूचक है। नौवें गीत का प्रारम्भ पंडित रघुनन्दनजी के प्रसंग को ही आगे बढ़ाता है। पंडितजी कालूगणी जैसे महान आचार्य से मिले, इसकी उन्हें प्रसन्नता थी, पर कालूयशोविलास-१ / ३५
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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