SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८. ग्राम-ग्राम रा जन हो भेळा, गुरु-पद भेंटण आवै जी। नयन निहाली सुरत सुहाळी, रूं-रूं रंग रचावै जी।। ६. खमा-खमा आवाज सुणत ही, दड़बड़-दड़बड़ दो. जी। खड़बड़ाट घर हाट खाट तज, गुरु-चरणां कर जोड़े जी।। १०. खिण इक खड्या रहो म्हाराजी! पगला भेटण प्यासो जी। इतलै एक कहै बाबाजी! कुछ उपदेश प्रकाशो जी।। ११. थारा प्यारा दर्शन दीठा, पातक सारा नीठा जी। हे अलवेश्वर! म्हांनै लागो, परमेश्वर-सा मीठा जी।। १२. सुणवाओ गुरुमन्त्र गुरुजी! भेंट रुपैया लीजे जी। म्है म्हारै घर-सारू धामां, इण में खंच न कीजे जी।। १३. नहिं रुपिया लेणै री मरजी, हाथ नारियल हेरो जी। रीता हाथां राजा गुरु रो, दरसण नहीं भलेरो जी।। १४. इचरज लाखां लोग-लुगाई, आंरी आणा पाळे जी। तो किण साटे विषमी बाटे, पय अलवाणा हालै जी।। १५. हय रूपाळो गय मतवालो, दुंदाळो फुदाळो जी। हाजर है हर वक्त, फक्त इण गुरु रो पन्थ निराळो जी।। १६. कनक कामिनी ज्यूं सुदामिनी, त्यागी शिव-अनुरागी जी। जय-जय कालू परम-कृपालू, वन्दै जो बड़भागी जी।। १७. 'फरस 'लुहारी' 'मोठ' पूज्य ‘पाली' आया, शासनराय 'सिसाय' वचोमृत बरसाया। बरसाया, भवि हरसाया, जुग मारग पृथक पृथक गाया, पावन युगल-पदाब्ज, शहर 'हांसी' ठाया।। १८. स्वमति अन्यमति तत्र हजारां संख्या में, अभिमुख हो एकत्र, पूज्य दरसण कामे। दरसण कामे, सब शिर नामे, कृतकृत्य आज गुरु चरणां में, यूं आखै मुख आवाज, राज सुख शरणां में।। १६. दीक्षा युग आषाढ़ कृष्ण तिथि चोथ हुई, हांसी-श्रावक भक्ति-भावना खूब बही। खूब बही, निशि तेर रही, 'सुलतानपुरे' 'उमरे' उमही, जय 'जमालपुर' 'तोषाम', 'भिवानी' बाट गही।। १. लय : धन-धन भिक्षु स्वाम २. वि. सं. १६७७ उ.२, ढा.१० / १४६
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy