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________________ दिवसे, २०. शुक्ल तीज आषाढ़, वार शुभ शुभ बहि हल्लू' बाजार, विराज्या ल्होड़' विषे । ल्होड़ विषे, विभुवर विलसे, बाईस संत सति तीस लसे, साल सितंतर च्यार - मास सुखवास वसे ।। योग-छवी, भवी । २१. मूरत अति रमणीय, अलौकिक कोमलता कमनीय, विलोकत लोक लोक भवी, पा वस्तु नवी, है ध्वांत-विधंसण इतर रवी, कामित-वितरण हेत, कहूं कोई कामगवी ।। तेरापथ रा अधिनेता राज स्वामजी । २२. बोलै भीवाणीवासी, राज ओ गुरुवर विमल विकासी जी । आया आवै कइ आसी, पिण इणसी नहिं इकलासी जी ।। २३. कइ भस्म विलेपित गात्रा, शिर जटाजूट मृग-छाल विशाल बिछावै, मुख सींग डींग २४. बाबा बाघंबर ओढ़े, गंगा-जमना - तट कइ न्हा-धो रहै सुचंगा, कइ नंगा अजब २५. कइ पंचाग्नी तप तापै, जंगम थावर ऊंचे स्वर धुन आलापै, कइ जाप अहोनिश जापै जी । । २६. कइ ॐ हरि ॐ हरि बोलै, उदरंभरि मौन न खोलै जी । कइ डगमग मस्तक डोलै, भव-वारिधि ज्यान झकोलै जी ।। २७. बण रहै ब्रह्म-सा सागी, नहिं कनक कामिनी त्यागी जी । गांजै सुल्फै रा रागी, इक ल्याव - ल्याव लौ लागी जी ।। २८. बक-ध्यान धेरै मद माची, की सिंघकथा नै सांची जी । पण ओ है पंथ प्रभू रो, वैराग-राग स्यूं पूरो जी । । स्वामजी ! तेरापथ रा... राज स्वामजी ! तेरापथ रा... बेमात्रा जी । संभलावै जी ।। पोढ़े जी । अड़ंगा जी ।। संतापै जी । १,२. ये दोनों भिवानी के दो बाजार हैं, जो दो मुहल्लों के रूप में परिणत हो गए । ३. उस वर्ष श्रावण मास दो थे, इसलिए चतुर्मास पांच मास का था। पांच मास होने पर भी वह चतुर्मास ही कहलाता है, इस दृष्टि से यहां चार मास का उल्लेख है । ४. लय : सुखपाल सिंहासण ५. देखें प. १ सं. ५७ १५० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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