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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद दीघनिकाय के महागोविन्द सुत्त में महागोविन्द (रणु राजा के पुरोहित) बताते हैं कि रेणु राजा ने अपने शासन को सात अलग-अलग राज्यों में बांट रखा था, ये राज्य और राजधानियाँ इस प्रकार हैं-कलिंग-दन्तपुर, अश्वक-पोतन, अवन्ति-माहिष्मती, सौवीर-रोरुक, विदेह-मिथिला, अंग-चम्पा, काशी-वाराणसी (दीघनिकाय, महावग्गपालि, भाग-2, पृ. 172 [137])। भगवती में उल्लेखित महाजनपदों-अंग, मगध, वत्स, वज्जि, काशी एवं कोसल का विवरण अंगुत्तरनिकाय में भी प्राप्त है तथा भगवती के मालव की अभिन्नता अंगुत्तरनिकाय के अवन्ति से मानने में अधिक मतभेद नहीं है। इसी प्रकार भगवती में उल्लेखित मौली जनपद को मल्ल का बिगड़ा रूप माना जा सकता है। किन्तु इसमें वर्णित अन्य राज्यों का अस्तित्व परवर्ती सुदूर पूर्व एवं दक्षिण भारतवर्ष के लगते हैं। जैसा कि ई.जे. थॉमस का कहना है कि जैन लेखकों ने अपनी सूची में उत्तर भारत के कंबोज और गांधार का उल्लेख नहीं किया है लेकिन बहुत सारे दक्षिण भारतीय राज्यों को शामिल किया है जैसा कि वह इन लोगों के बारे में जानता था, जो कि दक्षिण भारत का था। लेकिन एच.सी. राय चौधरी इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर लेखक वास्तव में उत्तर भारतीय लोगों से अनजान होता तो मालवा की स्थिति पंजाब में नहीं होती बल्कि निश्चित ही मध्य भारत में होती। इस स्थिति में वह सूची परवर्ती नहीं लगती।' उक्त मत में भगवती के लेखक ने यद्यपि कंबोज और गांधार का उल्लेख नहीं किया इसका अर्थ यह नहीं है कि वह उत्तर भारत के लोगों से अनजान था बल्कि लेखक ने उत्तर-पूर्व के कई राज्यों-मगध, काशी, कोशल, लाढ़ आदि राज्यों का उल्लेख किया है और सच तो यह है कि उस समय के ग्रन्थों में प्रमुख रूप से राज्यों की संख्या सोलह दी गई हैं किन्तु सम्भवतः उनकी वास्तविक संख्या इस रूढ़ संख्या से कहीं अधिक थी। इस प्रकार इन सूचियों में महत्त्वपूर्ण समानताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। इन समानताओं के होते हुए भी पुराण और बौद्ध ग्रन्थों की सूची में महत्त्वपूर्ण अन्तर है। इसका अंदाजा इस आधार पर 1. E.J.Thomas Suggests (History of Buddhist thought, p. 6) that the Jaina author who makes no mention of the northern Kamboja and Gandhāra but includes several South Indian peoples in his list, "wrote in South India and compiled his list from countries that he knew". But H.C. Ray Choudhari not satisfied with him. "If the writer was really ignorat of the northern peoples, his Mālavas could not have been in the Punjab and must be located in central India. In that case his account can hardly be assigned to a very early date." H.C. Ray Choudhari, Political History of Ancient India, p. 96.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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