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________________ महावीरकालीन अन्य मतवाद 213 को देखता है, वहीं उसको प्रणाम करता है। वह किसी उच्च (पूज्य) को देखता है तो अतिशयी विनम्रता के साथ प्रणाम करता है, नीच (अपूज्य) को देखता है तो साधारण विनम्रता से प्रणाम करता है। जिसे जिस रूप में देखता है, उसे उसी रूप में प्रणाम करता (भगवती, 3.1.34 [554])। पूरण गाथापति ने 'दाणामा' प्रव्रज्या स्वीकार की। इसमें वह चार पुट वाले लकड़ी के पाट में भिक्षा लाता, जिसे वह पहले पुट वाले भोजन को पथिकों को देता, दूसरे पुट वाले भोजन को कौए, कुत्तों को देता, तीसरे पुट वाला भोजन मच्छों के लिए और चौथे पुट वाला स्वयं खा लेता (भगवती, 3.1.102 [555])। ये पाणामा और दाणामा प्रव्रज्या स्वीकार करने वालों के आचार हैं। ___ चूर्णिकार ने आणामा, दाणामा, पाणामा प्रव्रज्या को विनयवादी बतलाया है (I. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 206, [556])। चूर्णिकार तथा आचार्य हरिभद्र ने विनयवादी में वैश्यायन पुत्र का उल्लेख किया है (1. सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 207, II. अनुयोगद्वारवृत्ति, पृ.17 [557]) । ज्ञाताधर्मकथा में जैन धर्म को विनयमूलक धर्म बतलाया गया है। थावच्चापुत्र ने सुदर्शन से कहा-मेरे धर्म का मूल विनय है (ज्ञाताधर्मकथा, I.5.59 [558])। यहां विनय शब्द मुनि के महाव्रत और गृहस्थ के अणुव्रत अर्थ में व्यवहृत है। बौद्धों के विनयपिटक में भी विनय-आचार की व्यवस्था है। वहां "सीलब्बतपरामास" शब्द उन लोगों के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो यह मानते हैं कि आचार के नियमों का पालन करने मात्र से शीलशुद्धि होती है (धम्मसंगणि, पृ. 277 [559])। केवल ज्ञानवादी और केवल आचारवादी-ये दोनों धाराएँ उस समय प्रचलित थीं। लेकिन विनम्रतावाद आचारवाद का ही एक अंग है। इसलिए उसका भी इसमें समावेश हो जाता है। किन्तु विनयवाद का केवल विनम्रतापरक अर्थ करने से आचारवाद का उसमें समावेश नहीं होता। इस प्रकार सत्-असत् के विवेक के बिना एकान्त मिथ्यादृष्टि से ग्रसित होकर विनय से ही स्वर्ग अथवा मुक्ति की प्राप्ति होती है, ऐसा मानना मिथ्या विनयवाद कहलाएगा, क्योंकि विनय यद्यपि चारित्र का ही अंग है, फिर भी सम्यक्दर्शन और सम्यक्ज्ञान रहित कोरा विनय, चारित्ररूप मोक्ष प्राप्ति में सहायक नहीं बन सकता (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ.500 [560])। हां वह विनयवादी
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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