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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद सम्यक्दर्शन- ज्ञान तथा चारित्ररूप विनय की सम्यक् आराधना करे, साथ ही जो निर्ग्रन्थ चारित्रात्मा है, उसकी विनयभक्ति करे तो मोक्षमार्ग के अंगभूत विनय से उसे स्वर्ग अथवा मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। जैकोबी ने भक्ति को मोक्ष का साधन बताने वाले को विनयवादी कहा है । अर्थात् जैकोबी ने विनयवाद को भक्तिरूप माना है । ' 214 अकलंकदेव (8-9वीं ई. शताब्दी) रचित तत्त्वार्थवार्तिक एवं गुणरत्न (13वीं ई. शताब्दी) रचित षड्दर्शनसमुच्चय टीका आदि ग्रन्थों में क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद एवं विनयवाद के आचार्यों का उल्लेख मिलता है । तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार - मरीचिकुमार, कपिल, उलूक, माठर आदि क्रियावादी, कोकुल, काण्ठेविद्विरोमक, सुगत आदि अक्रियावादी, शाकल्य, सात्यमुग्रि, मौद, पिप्पलाद, बादरायण, जैमिनि तथा वसु आदि अज्ञानवादी तथा वशिष्ठ, पाराशर, वाल्मीकि, व्यास, इलापुत्र, सत्यदत्त आदि विनयवादी आचार्य हुए हैं ( तत्त्वार्थवार्तिक, 8.1 [561]) तथा षड्दर्शनसमुच्चय टीका के अनुसार- कौक्कल, काण्ठेविद्धि, कौशिक, हरि आदि मत क्रियावादी के, मरीचिकुमार, उलूक, कपिल, माठर आदि मत अक्रियावादी के, साकल्य, वाष्कल, कुथुमि सात्यमुग्रि, चारायण, काठ माध्यन्दिनी, मौद, पैप्पलाद, बादरायण, स्विष्ठिकृदैतिकायन, वसु, जैमिनि आदि मत अज्ञानवाद के, वशिष्ठ, पाराशर, जतुकर्ण आदि मत विनयवाद के हैं (षड्दर्शनसमुच्चयटीका, पृ. 13, 21, 24, 29, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन [562])। कुछ नामभेद के अतिरिक्त इन ग्रन्थों में प्रायः ये समान ही हैं । इन नामों को देखने से ऐसा लगता है ये सभी वैदिक परम्परा के हों, जिनमें कुछ का उल्लेख ऋषिभाषित में भी मिलता है। कैलाशचन्द्र शास्त्री ने इन आचार्यों को वैदिक और किंचित् रूप से बौद्ध सन्दर्भों में ढूंढ़ने की कोशिश की है। सूत्रकृतांग के अनुसार क्रियावाद आदि चारों वाद श्रमण और वैदिक दोनों परम्परा में थे । 'समणा माहणा एगे' वाक्य के द्वारा स्थान-स्थान पर यह सूचना दी गई है कि श्रमण परम्परा के जैन और बौद्ध दोनों प्रमुख सम्प्रदाय 1. That of the Vainayakas, which seems to be identical with salvation by Bhakti, Hermann Jacobi, SBE, Sūtrakrtānga, Vol. 45, p. 83. 2. जैन साहित्य का इतिहास ( पूर्व - पीठिका), पृ. 317-325.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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