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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद सम्पूर्ण ज्ञान (केवलज्ञान) होने के पश्चात् उन्होंने देशना (उपदेश) देना शुरू किया। ऐसे में अनेक विचारक उनके पास आते और उनसे प्रश्न पूछते । जैनागमों और बौद्ध पिटकों में श्रमण और ब्राह्मण अपने-अपने मत की पुष्टि करने के लिए विरोधियों के साथ वाद करते हुए और युक्तियों के बल पर प्रतिवादियों को हराते हुए देखे जाते हैं । जैन आगमों में श्रमण, श्रावकों और स्वयं भगवान् महावीर के वादों का वर्णन अनेकों जगह आया है । 184 अस्तु प्रश्न यह है कि जैन आगमों में विभिन्न मतवादों के उल्लेख होने के क्या कारण रहे? जहां तक मैं समझ पाई, उसका एक कारण तो यह हो सकता है कि वे अन्य अन्य मतवाद, जिनका उल्लेख आगमों में हुआ है, महावीर के समकालीन होने की वजह से स्थान पा सके और जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि ये अन्य मतवादी महावीर से चर्चा करने आते तो ऐसे में उन मतवादों का उल्लेख होना स्वाभाविक सा लगता है । जैसे गौतम बुद्ध महावीर से उम्र में कुछ वर्ष छौटे थे और उनके मतवाद क्षणिकवाद का उल्लेख सूत्रकृतांग में हुआ । इस प्रकार समकालीन होने के कारण कभी चर्चा - वार्तालाप या मिलने के दौरान उनके सिद्धान्तों को जाना गया होगा और अपने शिष्यों को बताया गया होगा, ऐसा संभव लगता है । दूसरी बात यह भी थी कि बौद्धों के स्थान-स्थान पर विहार होते, जहाँ भिक्षु स्थायी रूप से रहते और अध्ययन-अध्यापन चलता था। ऐसा ही वैदिक संन्यासियों के साथ था जो मठों में रहते थे, किन्तु जैन साधु चातुर्मास के अलावा एक स्थान पर नहीं रहते थे। हमेशा विहार-विचरण होता रहता था, जैसा कि आज भी देखा जाता है । अतएव उनकी विद्या परम्परा स्थायी नहीं थी । ऐसी स्थिति में मार्ग में जो भी अन्य मतावलम्बी मिलता उनसे चर्चा- संवाद चलता और जैनों की उदार दृष्टि अपने ग्रन्थों में उन्हें समादर देती किन्तु वहीं जैनेतर ग्रन्थों में जैन मत की चर्चा कदाचित् ही हुई है । ' तीसरा कारण यह हो सकता है कि वह खण्डन प्रधान युग था । सभी स्वमत की प्रतिष्ठा करना चाहते थे तो संभव है ऐसे में जैसे कि सूत्रकृतांग में अन्य मतों का खण्डन हुआ है, उस आधार पर अन्य मतों का खण्डन कर स्वमत की स्थापना हेतु भी अन्य अन्य मतों का उल्लेख हुआ । 1. दलसुख मालवणिया, जैन अध्ययन की प्रगति, पृ. 6 से आगे (f).
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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