SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीरकालीन अन्य मतवाद जी. एस. घुर्ये तथा एन. दत्त के मत में बौद्ध धर्म तथा इसके सम-सामयिक मत ब्राह्मणों के विरुद्ध क्षत्रियों द्वारा सामाजिक वर्चस्व हेतु चलाए गए संघर्ष का परिणाम थे । ये मत प्रोटेस्टेंट धर्म के समान व्यापारियों तथा राजाओं की उभरती धनाढ्यता का तपोत्पादन था । इसी प्रकार बहुत से राजाओं का नशापान, क्रूरता, दुश्चरित्रता, विश्वासघात, अधार्मिकता आदि तथा पुरोहितों द्वारा राजाओं को अपनी मनमानी करने में सहयोग देने की तत्परता के कारण जन-साधारण की परिस्थितियाँ अत्यन्त विषम हो गईं। इन धार्मिक आन्दोलनों के एक नहीं, वरन् अनेक कारण रहे । जातिगत व्यवस्था के अत्यधिक जटिल होने के कारण सामाजिक असन्तोष था । परस्पर विरोधी मतों, सम्प्रदायों के झगड़ों के कारण व्यक्ति में आध्यात्मिक जीवन जीने की चाह पनपने लगी । 183 यह हम पूर्व में बता चुके हैं कि भगवान् महावीर का युग तर्क और जिज्ञासा का युग था तथा उस समय अनेकों मतवाद अस्तित्व में थे । अनेक धर्माचार्य, धार्मिक और मतवादी अपने-अपने धर्मों का परिपोषण करते हुए विहरण कर रहे थे । अनेक लोग अपने आपको तत्त्व द्रष्टा बताते और अपने सिद्धान्तों को लोगों में फैलाने के लिए विहार करते और उपदेश देते थे । उनका पारस्परिक मिलन और वार्तालाप मुक्त था । खुलकर धर्मसंघ के आचार्यों, प्रमुखों में चर्चाएँ होती थी। कभी-कभी जिज्ञासु स्वयं ऐसे लोगों का नाम सुनकर उनके पास जाता और अपनी शंकाएँ रखता । प्रश्नकर्ता के सामने अनेक मते- सिद्धान्तों और उसके समर्थन में युक्तियों की धारा बहती, इसमें स्वमत को श्रेष्ठ दिखाने की प्रयास चलता रहता था । इस प्रकार वाद-प्रतिवाद होने से कालान्तर में वाद के विभिन्न नियमों का विकास हो गया । 600 ई.पू. के प्रमुख धर्मनायकों में भगवान् महावीर भी एक प्रमुख धर्मनायक थे, अतः इस स्थिति से उनको भी गुजरना पड़ा। यद्यपि जैनधर्म आचार प्रधान है तथापि देशकाल की परिस्थितियों के अनुरूप उन्होंने भी अपनी धर्मदृष्टि का प्रचार-प्रसार करने के लिए चारित्र बल के अलावा वाग्बल का भी सहारा लिया । 1. के. टी. एस. सराओ, प्राचीन भारतीय बौद्ध धर्म : उद्भव, स्वरूप एवं पतन, द कॉरपोरेट बॉडी ऑफ द बुद्ध एज्युकेशनल फाउन्डेशन ताइपेइ, ताइवान, द्वितीय संशोधित संस्करण, 2005, T. 61.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy