SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 182 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि इनमें से कुछ की उत्पत्ति भगवान् महावीर से पूर्व हो चुकी थी। महावीर युगीन विभिन्न मतवादों को तपस्वियों के प्रबुद्ध आन्दोलन की संज्ञा दी गई है, जो वस्तुतः सामान्य आन्दोलन नहीं थे। न ही इनकी उत्पत्ति ब्राह्मणवादी सुधारों से, न क्षत्रियों के विद्रोह से और न ही मध्यम वर्ग के प्रयत्नों का परिणाम थी अपितु वह एक वर्गहीन, जातिहीन आन्दोलन था। यद्यपि ये आन्दोलन समाज के लोगों के बीच शुरू हुए तथापि इनका किसी वर्ग विशेष के हित दृष्टि से कोई सम्बन्ध नहीं था। हां यह अलग बात है कि इन मतवादों के प्रमुखों (प्रवर्तक) में कुछ के समाज सुधारवादी स्वर जरूर थे। इन बौद्धिक आन्दोलनों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं मैक्समूलर, जी. ब्युलर, एच. कर्न, हर्मन जैकोबी का कहना है कि इस युग के बौद्ध, जैन तथा अन्य नास्तिक पंथों का आदर्श ब्राह्मणवादी संन्यासी थे। उनका मानना है कि वैदिक कर्मकाण्ड की विरोध में ये शक्तिशाली हो रहे थे। रीज डेविड्स के मतानुसार इन धार्मिक परिव्राजक संन्यासियों का उत्थान बौद्धिक आन्दोलन के परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म की उत्पत्ति के पूर्व हो चुका था। यह बहुत कुछ सामान्य (बौद्धिक) आन्दोलन था, किन्तु पुरोहित आन्दोलन नहीं था। इसमें कोई संशय नहीं है, जो ब्राह्मण धर्म के जीवन के मूल गुण थे, उसके ही नैतिक विचारों में विरोध होने लगा। जिसका परिणाम यह हुआ कि त्रिवर्ग के अतिरिक्त मोक्ष भी होता है, उसकी धारणा को लोग मानने लगे। चार आश्रम सिद्धान्त वह उसी का परिणाम है। प्रवृत्ति की जगह निवृत्ति का समन्वय होने लगा। धर्मसूत्रों में जीवन की चार अवस्थाओं का सिद्धान्त आया है, वह उसी का फलस्वरूप है। जी.सी. पाण्डे का मानना है कि स्वयं वेदों में कर्मकाण्ड विरोधी प्रवृत्ति दिखाई देती है। वह तपस्या के प्रभाव के कारण है, जो वेदों से पूर्व से चली आ रही थी। कुछ पंथ, जैसे जैन धर्म और बौद्ध धर्म, इस पूर्व वैदिक विचारधारा की निरन्तरता को प्रकट करते हैं।' 1. K.C. Jain, Lord Mahavira and His Times, p. 153. 2. Buddhist India, 9th edn., p. 111. 3. Studies in the Origines of Buddhism, p. 317.
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy