SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियतिवाद 163 भगवती और स्थानांग में नियतिवाद का सीधा स्वरूप तो नहीं मिलता किन्तु आगम युग में प्रचलित मत एवं दर्शनों के अन्तर्गत इसका उल्लेख समुपलब्ध होता है। वहां चार समवसरण अवधारणा में क्रियावाद में कालवाद, आत्मवाद, नियतिवाद और स्वभाववाद का तथा अक्रियावाद में कालवाद आदि पांच के अतिरिक्त यदृच्छावाद का भी समावेश हुआ है (I. स्थानांग अभयदेव की टीका, 4.4.345, II. नंदीसूत्र मलयगिरि अवचूरि, पृ.177, III. षडदर्शन समुच्चय, पृ. 14 भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन [429])। ___क्रियावाद एवं अक्रियावाद के अन्तर्गत प्राप्त 'नियतिवाद' का निम्नांकित स्वरूप व्यक्त हुआ है क्रियावादी में नियतिवाद के भेद-1. जीव स्वतः नित्य नियति से 2. जीव स्वतः अनित्य नियति से 3. जीव परतः नित्य नियति से 4. जीव परतः अनित्य नियति से 5. अजीव स्वतः नित्य नियति से 6. अजीव स्वतः अनित्य नियति से 7. अजीव परतः नित्य नियति से 8. अजीव परतः अनित्य नियति से 9. आम्नव स्वतः नित्य नियति से 10. आम्नव स्वतः अनित्य नियति से 11. आस्रव परतः नित्य नियति से 12. आस्रव परतः अनित्य नियति से 13. बन्ध स्वतः नित्य नियति से 14. बंध स्वतः अनित्य नियति से 15. बंध परतः नित्य नियति से 16. बंध परतः अनित्य नियति से 17. संवर स्वतः नित्य नियति से 18. संवर परतः अनित्य नियति से 19. संवर परतः नित्य नियति से 20. संवर परतः अनित्य नियति से 21. निर्जरा स्वतः नित्य नियति से 22. निर्जरा स्वतः अनित्य नियति से 23. निर्जरा परतः नित्य नियति से 24. निर्जरा परतः अनित्य नियति से 25. पुण्य स्वतः नित्य नियति से 26. पुण्य स्वतः अनित्य नियति से 27. पुण्य परतः नित्य नियति से 28. पुण्य परतः अनित्य नियति से 29. पाप स्वतः नित्य नियति से 30. पाप स्वतः अनित्य नियति से 31. पाप परतः नित्य नियति से 32. पाप परतः अनित्य नियति से
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy