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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद भाव और संगति आजीवक की तात्त्विक व्यवस्था की वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतीत होती है जो नियति से जुड़े हुए हैं । भाव को स्वरूप या स्वभाव का पर्यायवाची कहा जा सकता है जो नियति के मूलभूत वर्ग के अन्तर्गत आता है। भाव से तात्पर्य प्रत्येक वस्तु के कुछ निश्चित गुणधर्म होते हैं जो उसके विकास, नियमों, वृद्धि व पूर्वजन्म के निर्धारण के महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं । वस्तुतः संगति एक निश्चित लक्ष्य है उसका भावरूप ही है परिणति और जो लक्ष्य है वह पहले से नियत है 1 162 आगमिक व्याख्या साहित्य में आजीवक मत को ' त्रैराशिक' कहा गया है, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् को त्रयात्मक मानता है - जीव, अजीव, और जीव-अजीव अथवा सत्, असत्, और सत्-असत् (नंदीचूर्णि, पृ. 72-73 प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, अहमदाबाद. प्रकाशन [424]) और शीलांक ने आजीवक, त्रैराशिक मत और दिगम्बर इन तीनों को एक ही माना है (सूत्रकृतांगवृत्ति, पृ. 393 [425 ])। कोशकार हलायुध (10वीं ई. शदी.) और अभयदेवसूरि ( 11वीं ई. शदी ) इन तीनों को भिन्न नहीं मानते हैं (I. हलायुधकोश, 2.344-345, II. समवायांगवृत्ति, Į. 130 [426]) | सूत्रकृतांग और प्रश्नव्याकरण की टीका में तथा सन्मतितर्क, शास्त्रवार्ता समुच्चय, उपदेशपद महाग्रन्थ, लोकतत्त्व निर्णय आदि दार्शनिक ग्रन्थों में नियतिवाद के संदर्भ में एक श्लोक में समान मन्तव्य प्रस्तुत हुआ हैअर्थात् जो पदार्थ नियति के बल के आश्रय से प्राप्तव्य होता है वह शुभ या अशुभ पदार्थ मनुष्यों (जीव- मात्र) को अवश्य प्राप्त होता है । प्राणियों के द्वारा महान् प्रयत्न करने पर भी अभाव्य कभी नही होता है तथा भावी का नाश नहीं होता है (I. सूत्रकृतांगवृत्ति, I. 1. 2.3, II. प्रश्नव्याकरणवृत्ति, 1.2.7, III. शास्त्रवार्ता समुच्चय, 2.62 की यशोविजयी टीका, IV. सन्मतितर्क टीका, 3.53, V. उपदेशपद महाग्रन्थ, पृ. 140, VI. लोकतत्त्व निर्णय, 27, पृ. 25 [427])। इन्हीं भावों के प्रतिरूप विचार महाभारत में भी उपलब्ध है - पुरुष को जो वस्तु जिस प्रकार मिलने वाली होती है, वह उसी प्रकार मिल ही जाती है। जिसकी जैसी होनहार होती है, वह वैसी होती ही है ( महाभारत, शांतिपर्व, 226.10 [428]) |
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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