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________________ क्षणिकवाद 125 __पांचों स्कन्धों के भेदों का विवेचन इस प्रकार है रूप-स्कन्ध-विज्ञान से नामरूप की उत्पत्ति होती है। बौद्ध दर्शन में समस्त आध्यात्मिक एवं बाह्य जगत् व्यापार पाँच स्कन्धों में विभक्त माना गया है। वे पाँच स्कन्ध है-रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान। इनका ही नाम एवं रूप में द्विविध विभाग किया गया है। रूप में मात्र रूपस्कन्ध का समावेश होता है तथा नाम में शेष चार स्कन्धों का। अर्थात् वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान को बौद्धदर्शन में 'नाम' कहा गया है। मिलिन्दप्रश्न में भी कहा गया है कि जितनी स्थूल चीजें है वे रूप है और जितने सूक्ष्म मानसिक धर्म हैं वे नाम है। पृथ्वी, अप्, अग्नि, एवं वायु धातु रूप है तथा इनसे जो उत्पन्न है वह भी रूप है। बौद्ध धर्म में नामरूप मनुष्य की मनोभौतिक प्रकृति का उद्घाटन करने वाला प्रत्यय है। यह शरीर और बुद्धि (मन) के एक साथ कार्य करने की शक्ति को स्पष्ट करने वाला प्रत्यय है। विज्ञान-स्कन्ध-विज्ञान संस्कारों से उत्पन्न होता है। विज्ञान से तात्पर्य उन चित्त-धाराओं से है जो पूर्वकृत कुशल या अकुशल कर्मों के विपाक स्वरूप होती हैं और जिनके कारण हमें इन्द्रिय-विषयक अनुभूति होती है। नए जन्म (उत्पत्ति) में योनि और स्वरूप को निश्चित करने वाला विज्ञान होता है। विज्ञान माँ के गर्भ में स्थित होकर पाँच स्कन्धों की उत्पत्ति करता है, जिन्हें नामरूप कहते हैं और इन स्कन्धों में छः इन्द्रियों की ज्ञान चेतना का निवास होता है। विज्ञान माँ के गर्भ में अंतर्बोध अथवा चेतना का बीज रूप है, जो नए शरीर के पंच तत्त्वों को अवस्थित करता है। यह अंतश्चेतना पूर्व कर्मों अथवा संस्कारों का फल है, जो पिछले समय में मृत्यु के समय तक पूर्ववर्ती जीवन में संकलित किए गए थे। कुछ विचारक बौद्ध धर्म के इस विज्ञान प्रत्यय में आत्मा को ढूंढते हैं एवं यह व्याख्या करते हैं कि बौद्धों का विज्ञान आत्मा ही हैं। परन्तु बौद्ध धर्म में इस प्रत्यय में किसी प्रकार के आत्मा के स्वरूप का निदर्शन नहीं होता है। विज्ञान या चेतना का तत्त्व ऐसा घटक है, जो प्राणी की मृत्यु हो जाने पर नए प्राणी के जीवन का मूल तत्त्व बनता है। यदि इस विज्ञान या चेतना को नामरूप की उत्पाद सामग्री नहीं मिलती है, तो यह विकसित नहीं हो सकता है। इसी प्रकार विज्ञान एवं नामरूप अन्योन्याश्रित एवं आदिम निदान है। नए जीवन
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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