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________________ जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद के, परन्तु एक शरीर से दूसरे शरीर में आने जाने वाली आत्मा से यह भिन्न अर्थ का बोधक है। आत्मा सत् है विज्ञान असत् अनित्य, अध्रुव, अनात्म स्वरूप । 126 वेदना-स्कन्ध-स्पर्श से उत्पन्न होने वाला सुख - दुःख का अनुभव वेदना है | वेदना को अभिधर्मकोश में वित्ति कहा गया है । जो धर्म आलंबन के रस का वेदन (अनुभव) करता है, वह वेदना है । अनुभूति इसका लक्षण है । जब छः स्पर्श उत्पन्न होते है तब वेदनाएं भी उनके साथ युगपत् उत्पन्न होती है 1 यद्यपि वेदना वस्तु के द्वारा प्रारम्भ होती है, लेकिन इसका प्रभाव चित्त पर होता है और इसका मुख्य अंग अनुभव है, जिसके द्वारा वस्तु के रंग, रूप और रसादि का ज्ञान होता है । वेदना ( अनुभूति ) अपनी क्षमता, दक्षता और शक्ति से वस्तु विशेष का पूर्णरूपेण रसास्वाद करती है । अतः यह कहा जाता है कि रसास्वाद और अनुभूति वेदना की क्रिया है । वेदना को द्विविध, त्रिविध प्रकार का कहा गया है । वस्तुओं या उनके विचार के सम्पर्क में आने पर जो 1. सुख 2. दुःख या न 3. सुख दुःख के रूप में अनुभव करते हैं, वही वेदना है । स्वभाव से वेदना पाँच प्रकार की होती है - सुख, दुःख, सौमनस्य, दौर्मनस्य और उपेक्षा । उत्पत्ति के अनुसार वह तीन प्रकार की होती है - कुशल, अकुशल और अव्याकृत। इस प्रकार वेदना नाना होती है, जो अनुभव करने के लक्षण वाली है । संज्ञा-स्कन्ध-संज्ञा, उत्पत्ति के अनुसार तीन प्रकार की होती है - कुशल,.. अकुशल और अव्याकृत। जो कुछ पहचानने के लक्षण वाला है, वह सब एकत्र करके संज्ञास्कन्ध है । ऐसा कोई विज्ञान नहीं है जो संज्ञा से रहित हो, इसलिये जितने विज्ञान के भेद हैं, उतने संज्ञा के भी हैं । संस्कार-स्कन्ध-अविद्या से संस्कार उत्पन्न होते हैं । जो कुशल और अकुशल कायिक, वाचिक और मानसिक चेतनाएं पुनर्जन्म का कारण बनती हैं, वे संस्कार हैं । 'संस्कार' से प्रमुखतः चैतसिक संकल्प अथवा मानसिक वासनाएं अभिप्रेत हैं। इस अर्थ में संस्कार कर्म का ही सूक्ष्म मानसिक रूप है । विस्तृत अर्थ में जीवन के भौतिक और मानसिक तत्त्वों का ही नाम संस्कार है । पूर्वकर्मों के कारण जो प्रवृत्तियां उत्पन्न होती हैं, वे संस्कार कहलाती हैं । राग-द्वेष, धर्म-अधर्म इत्यादि की चेतना को भी संस्कार कहा गया है । इस अर्थ में संस्कार कर्म है एवं बौद्ध धर्म में उन्हें काय - संस्कार, वाक्- संस्कार और चित्त
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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