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________________ सप्तम अध्याय 7. मंखलि गोशालक के अन्य सिद्धान्त 8. भारतीय चिन्तन में नियतिसम्बन्धी अवधारणा 9. नियतिवाद की जैन दृष्टि से समीक्षा महावीरकालीन अन्य मतवाद 181-227 1. जैन आगमों में विभिन्न मतवादों के उल्लेख का कारण 2. श्रमण संस्कृति श्रमणों के पांच प्रकार के मतों का संक्षिप्त परिचय-निर्ग्रन्थ, शाक्य, तापस, परिव्राजक, आजीवक 3. चार समवसरण की अवधारणा क्रियावाद; अक्रियावाद; अज्ञानवाद; विनयवाद 4. जैन आगमों में सृष्टि उत्पत्तिसम्बन्धी विभिन्न मत देवकृत सृष्टि; ब्रह्माकृत सृष्टि; ईश्वरकृत सृष्टि; प्रधानकृत सृष्टि; स्वयंभूकृत सृष्टि; अण्डकृत सृष्टि 5. पंचमत के समकालीन मतवाद : • कर्मोपचय सिद्धान्त, • अवतारवाद अष्टम अध्याय- उपसंहार 228-233 विभिन्न मतवादों की समालोचना एवं जैन दृष्टि से समीक्षा टिप्पण (Notes & References) 234-348 ग्रन्थ-पञ्जिका 349-378 ___ 1. मूल स्रोत : साहित्यिक ग्रन्थ, अनुवाद, संपादन इत्यादि (a) जैन आगम और उसके व्याख्या ग्रन्थ (b) आगमेतर जैन ग्रन्थ (c) पालि ग्रन्थ (d) ब्राह्मण (वैदिक, सूत्र, महाकाव्य, पुराण और व्याकरण) ग्रन्थ (e) दार्शनिक ग्रन्थ (1) अन्य ग्रन्थ 2. उप-अनुसंगी प्रमाण (Secondary Authorities) (a) सामान्य आधुनिक ग्रन्थ, शोध-प्रबन्ध, लेख इत्यादि (b) कोश एवं अन्य सन्दर्भ ग्रन्थ
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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