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________________ काव्यालंकार टीका, सहस्रनामस्तवन सटीक, जिनयज्ञ कल्पसटीक, त्रिषष्ठिस्मृतिशास्र, नित्यमहोद्योत, रत्नत्रयविधान, अष्टांगहृद्योतिनी टीका, सागारधर्मामृत सटीक, एवं अनगारधर्मामृत सटीक। महाकवि अर्हद्दास संस्कृत गद्य और पद्य के निर्माता के रूप में महाकवि अर्हद्दास अद्वितीय हैं। इनके गुरु 'आशाधर' थे। अर्हद्दास का समय वि. सं. 1300 मानना उचित है। अर्हद्दास की तीन रचनायें उपलब्ध हैं - 1. मुनिसुव्रतकाव्य, 2. पुरुदेवचम्पू, और 3. भव्यजनकण्ठाभरण। कवि नागदेव नागदेव सारस्वतकुल में उत्पन्न हुये और उनके परिवार के सभी व्यक्ति चिकित्साशास्त्र या अन्य किसी शास्त्र से परिचित थे। नागदेव का समय वि. सं. 1573 के पूर्व है। नागदेव का एक ही ग्रन्थ 'मदनपराजय' उपलब्ध है। कवि रामचन्द्र मुमुक्षु ये दिव्यमुनि 'केशवनन्दि' के शिष्य थे। रामचन्द्र मुमुक्षु की 'पुण्यास्रवकथाकोश' के साथ 'शान्तिनाथचरित' कृति भी बतलायी जाती है। रामचन्द्र का समय 13वीं शती के मध्य का भाग होगा। कवि राजमल्ल राजमल्ल का काव्य अध्यात्मशास्त्र, प्रथमानुयोग और चरणानुयोग पर आधृत है। इनका समय विक्रम की 17वीं शताब्दी है। इनकी निम्नलिखित रचनायें प्राप्त हैं - लाटीसंहिता, जम्बूस्वामीचरित, अध्यात्मकमलमार्तण्ड, पञ्चाध्यायी, एवं पिङ्गलशास्त्र। अभिनव चारुकीर्ति पंडिताचार्य अभिनव पंडिताचार्य का जनम दक्षिण भारत के सिंहपुर में हुआ था। जब श्रवणबेलगोल में भट्टारक-पद प्राप्त किया, तो इनका उपाधिनाम 'चारुकीर्ति' हो गया। इनका समय ई. सन् की 16शीं शती होना चाहिये। अभिनव पंडिताचार्य की दो रचनायें उपलब्ध हैं - 1. गीतवीतराग, और 2. प्रमेयरत्नालंकार। अपभ्रंश-भाषा के कवि एवं लेखक गुर्जर, प्रातिहार, पालवंश, चालुक्य, चौहान, चेदि, गहड़वाल, चन्देल, परमार आदि राजाओं के राज्यकाल में अपभ्रंश का पर्याप्त विकास हुआ। छठवीं शती से चौदहवीं शतक तक अपभ्रंश में अनेक मान्य आचार्य हुये, जिन्होंने अपनी लेखनी से अपभ्रंश-साहित्य को मौलिक कृतियाँ समर्पित की। भंगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ 4083
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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