SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमुख एवं प्रभावक अपभ्रंश-भाषी कवियों और लेखकों का विवरण निम्नलिखित हैकवि चतुर्मुख चतुर्मुख कवि अपभ्रंश-भाषा के ख्यातिप्राप्त कवि थे। ‘पद्धड़िया' छन्द के क्षेत्र में चतुर्मुख का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। सम्भवतः इनकी दो रचनायें रही हैं - 1. महाभारत, और 2. पंचमीचरिउ। आज ये रचनायें उपलब्ध नहीं हैं। महाकवि स्वयंभदेव काव्य-रचयिता के साथ स्वयंभू छन्दशास्त्र और व्याकरण के भी प्रकाण्ड पण्डित थे। स्वयंभूदेव गृहस्थ थे। इनकी कई पलियाँ थीं, जिनमें दो के नाम प्रसिद्ध हैं - एक 'अइच्चंबा (आदित्यम्बा) ओर दूसरी सामिअंब्बा। स्वयंभु का व्यक्तितव प्रभावक थ। वे शरीर से क्षीणकाय होने पर भी ज्ञान से पुष्टकाय थे। पुष्पदन्त ने इन्हें 'आपुलसंघीय' बताया है। इसप्रकार ये यापनीय-सम्प्रदाय के अनुयायी जान पड़ते हैं। वे दाक्षिणात्य थे। इनका समय ई. सन् 783 है। इनकी रचनायें हैं - पउमचरिउ, रिटणेमिचरिउ, स्वयंभुछंद, सोद्धयचरिउ, पंचमिचरिउ, एवं स्वयंभुव्याकरण। महाकवि पुष्पदन्त पुष्पदन्त का घरेलू नाम 'खण्ड' या खण्डू' था। इनका स्वभाव उग्र और स्पष्टवादी था। कवि के उपाधिनाम अभिमानमेरु कविकुल-तिलक, सरस्वतीनिलय और काव्यपिसल्ल' थे। महाकवि पुष्पदन्त कश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम 'केशवभट्ट' और माता का नाम 'मुग्धादेवी' था। आरंभ में कवि शैव थे, पर बाद में वह किसी जैन-मुनि के उपदेश से जैन हो गये। मान्यखेट में कवि ने अपनी अधिकांश रचनायें लिखी हैं। महाकवि का समय ई. सन् की प्रथम शती है। इनकी तीन रचनायें उपलब्ध हैं - 1. तिसट्हिमहापुरिसगुणालंकार या महापुराण, 2. णायकुमारचरिउ, एवं 3. जसहरचरिउ। कवि धनपाल धनपाल के पिता का नाम 'माएसर' (मायेश्वर) और माता का नाम 'धनश्री' था। इनका जन्म 'धक्कड़' वंश में हुआ था। धनपाल दिगम्बर-सम्प्रदाय के अनुयायी थे। इनका समय 10वीं शती है। कवि की एक ही रचना 'भविसयत्तकहा' प्राप्त है। धवल कवि कवि धवल के पिता का नाम 'सूर' और माता का नाम 'केसुल्ल' तथा इनके गुरु का नाम 'अम्बसेन' था। धवल ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुये थे; पर अन्त में वे जेन-धर्मावलम्बी हो गये थे। कवि का समय 10वीं-11वीं शती सिद्ध होता है। कवि का एक ही ग्रंथ 'हरिवंशपुरण' उपलब्ध है। 0084 भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
SR No.032426
Book TitleBhagwan Mahavir ki Parampara evam Samsamayik Sandarbh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokchandra Kothari, Sudip Jain
PublisherTrilok Ucchastariya Adhyayan evam Anusandhan Samsthan
Publication Year2001
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy